जीवन की थकान ,लम्बी राह
और वो छोटी छोटी सी पगडंडियाँ ,
जो पहले से नहीं बनी थी
मुझे राह दिखने ..
मेरे थके हुए पैरो ने ..
बना ली थी .उस मंजिल
की चाह में जो अंतहीन थी
वो तपती धूप और
पैरो के छाले..
टीस नहीं उठती यह सोचकर ...
हाँ टीस उठती है ,की
वो दरख्त देखता रहा , जड़ वहीँ
और मेहरूम रहा….. मै भी
उसकी छाव से …..
मुसाफिर हूँ यही सोचकर
रचनाकार -सतीश अग्निहोत्री
Comment
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्.....Er. Ganesh Jee "Bagi"
//मुझे राह दिखने ..(दिखाने)
मेरे थके हुए पैरो ने ..//
वाह वाह आदरणीय सतीश अग्निहोत्री जी, बहुत ही अच्छी रचना, इस खुबसूरत अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें |
Thanks all..... for making it most popular blog post...
धन्यवाद् मुकेश जी
I thank u books online team for the approval and making my lines reachable to all the peoples having same interest....
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online