मोड़ राहो में नए अब जोड़ देता हूँ ,
कुछ पुराना कुछ नया सब छोड़ देता हूँ ,
चल रही यू ज़िन्दगी ज्यों पानी में लहरें हो उठी,
खुद को समझ अब एक लहर किनारे मोड़ देता हूँ ,
कुछ पुराना कुछ नया सब छोड़ देता हूँ ,
जो हैं समझते कुछ नहीं मैं वो बड़े नादान हैं,
नादानियो में एक समझ बस जोड़ देता हूँ ,
ना दिखे सूरत तुम्हारी लाख महंगा है तो क्या,
ये शीशा ही नहीं सच्चा इसे लो तोड़ देता हूँ ,
कुछ पुराना कुछ नया सब छोड़ देता हूँ !
---------------------------------------------------------------
(इस जहाँ में नही)
(मैं)
अब ना हँसाओ मुझे , यू ही उदास रहने दो ,
गम तो सब पे होते हैं , फर्क सिर्फ इतना है,
कुछ लड़ते हैं हालातों से और कुछ डर जाते हैं ,
कुछ जीते हैं और कुछ मर जाते हैं ,
और कुछ वो हैं जो हर घाव को पन्नो से सिये जाते हैं ,
वहीँ एक शख्श है,
जो लड़ता भी है डरता भी है,
जीता भी है मरता भी है,
अपने हर घाव को पन्नो से सीता भी है,
उसी नाचीज़ को आज़ाद कहते हैं !
एक द्वन्द हमारे मन में जाने कब से पलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,
किसने है बनाया ये समाज पी के जो खून चलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,
मैं प्रेम नही कर पाऊं मैं राह नही चुन पाऊं ,
जितने बंधन मैं तोडूँ उतना कसता ही जाऊं
, ये ज़हर हमारी नस नस में जाने कब से घुलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,
लड़की बन मान बढाऊँ मैं लड़का बन मान बढाऊँ ,
कौन बेहतर है किस्से ये समझ नही मैं पाऊँ ,
युवा वर्ग क्यूँ धीरे -धीरे इस कुंठा में गलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,
बस एक रास्ता है मुझपे मैं भी अब नंगा हो जाऊँ ,
पहचान छोड़ कर मैं अपनी घटिया समाज में खो जाऊँ ,
झूठ है ये जो कर्म करोगे वैसा फल मिलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,
Comment
ब्रजेशजी, आपकी प्रस्तुतियों के प्रति हार्दिक बधाई. भावनाओं का बेहतर प्रस्फुटन हुआ है. इसे संयत करते रहें.
शुभेच्छाएँ
आपका बहुत आभार आदरनीय गणेश जी , आपको रचनाएँ पसंद आयीं मेरा प्रयास सफल हुआ !
आपका बहुत आभारी हूँ आदरणीया राजेश जी, आप जैसे महान रचनाकारों के ही आशीर्वाद से ही ये रचनाये लिख सका हूँ !
बढ़िया रचनाएं अलग- अलग पहचान बनाती हुई बहुत बधाई आपको
//एक द्वन्द हमारे मन में जाने कब से पलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,//
बहुत खूब, लड़की और लड़का, दोनों एक दुसरे के पूरक फिर कभी लड़का होना खलता है तो कभी लड़की होना खलता है,
पाचों रचनाएँ अलग अलग खुशबुओं से सराबोर हैं, प्रयास अच्छा लगा , बधाई स्वीकार करें आदरणीय आजाद जी |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online