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(नए मोड़) 


मोड़ राहो में नए अब जोड़ देता हूँ ,
कुछ पुराना कुछ नया सब छोड़ देता हूँ ,
चल रही यू ज़िन्दगी ज्यों पानी में लहरें हो उठी,
खुद को समझ अब एक लहर किनारे मोड़ देता हूँ ,
कुछ पुराना कुछ नया सब छोड़ देता हूँ ,
जो हैं समझते कुछ नहीं मैं वो बड़े नादान हैं,
नादानियो में एक समझ बस जोड़ देता हूँ ,
ना दिखे सूरत तुम्हारी लाख महंगा है तो क्या,
ये शीशा ही नहीं सच्चा इसे लो तोड़ देता हूँ , 
कुछ पुराना कुछ नया सब छोड़ देता हूँ ! 
---------------------------------------------------------------
(इस जहाँ में नही)

काबिल-ऐ-तारीफ है यू तो कायनात सारी,
उनकी आँखों में है जो बात , इस जहाँ में नही ,
पा के देखा है खुदा भी मगर सुकून ना मिला ,
उनको पाने में है जो एहसास , इस जहाँ में नही ,
बहुत ही ख़ास होता है जिस दिल में मुहब्बत हो ,
जुदा अंदाज़ होता है जहाँ मिलती नज़ाक़त हो ,
उनके दिल में है जो ज़ज्बात , इस जहाँ में नही ,
उनके जीने में है जो अंदाज़ , इस जहाँ में नही !
----------------------------------------------------------

(मैं) 

अब ना हँसाओ मुझे , यू ही उदास रहने दो ,

बहता है अब लहू जो , आँखों से बहने दो ,
तुम क्या जानो , है दर्द -ऐ-मुहब्बत क्या ,
हर दर्द मुझको अब , हस हस के सहने दो ,
बन तो जाती तकदीर अपनी , मैं जो कहता ,
फिर कौन कहता खुदा को , खुदा ही रहने दो ,
बड़ी मुद्दत में ये आजाद अब आजाद हुआ है ,
आजाद हूँ जो अब मुझे आजाद रहने दो !
-----------------------------------------------------------
(आज़ाद)

गम तो सब पे होते हैं , फर्क सिर्फ इतना है,
कुछ लड़ते हैं हालातों से और कुछ डर जाते हैं ,
कुछ जीते हैं और कुछ मर जाते हैं ,
और कुछ वो हैं जो हर घाव को पन्नो से सिये जाते हैं ,
वहीँ एक शख्श है,
जो लड़ता भी है डरता भी है,
जीता भी है मरता भी है,
अपने हर घाव को पन्नो से सीता भी है,
उसी नाचीज़ को आज़ाद कहते हैं !

------------------------------------------------------------
(अस्तित्व)
 

एक द्वन्द हमारे मन में जाने कब से पलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,
किसने है बनाया ये समाज पी के जो खून चलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,
मैं प्रेम नही कर पाऊं मैं राह नही चुन पाऊं ,
जितने बंधन मैं तोडूँ उतना कसता ही जाऊं
, ये ज़हर हमारी नस नस में जाने कब से घुलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,
लड़की बन मान बढाऊँ मैं लड़का बन मान बढाऊँ ,
कौन बेहतर है किस्से ये समझ नही मैं पाऊँ  ,
युवा वर्ग क्यूँ धीरे -धीरे इस कुंठा में गलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,
बस एक रास्ता है मुझपे मैं भी अब नंगा हो जाऊँ  , 
पहचान छोड़ कर मैं अपनी घटिया समाज में खो जाऊँ  ,
झूठ है ये जो कर्म करोगे वैसा फल मिलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 24, 2012 at 12:48pm

ब्रजेशजी, आपकी प्रस्तुतियों के प्रति हार्दिक बधाई. भावनाओं का बेहतर प्रस्फुटन हुआ है. इसे संयत करते रहें.

शुभेच्छाएँ

Comment by Brajesh Kant Azad on September 23, 2012 at 10:54pm

आपका बहुत आभार  आदरनीय गणेश जी , आपको रचनाएँ पसंद आयीं मेरा प्रयास सफल हुआ !

Comment by Brajesh Kant Azad on September 23, 2012 at 10:49pm

आपका बहुत आभारी हूँ आदरणीया राजेश जी, आप जैसे महान रचनाकारों के ही आशीर्वाद से ही ये रचनाये लिख सका हूँ !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 23, 2012 at 8:30pm

बढ़िया रचनाएं अलग- अलग पहचान बनाती हुई बहुत बधाई आपको 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2012 at 6:44pm

//एक द्वन्द हमारे मन में जाने कब से पलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,//

बहुत खूब, लड़की और लड़का, दोनों एक दुसरे के पूरक फिर कभी लड़का होना खलता है तो कभी लड़की होना खलता है,

पाचों रचनाएँ अलग अलग खुशबुओं से सराबोर हैं, प्रयास अच्छा लगा , बधाई स्वीकार करें आदरणीय आजाद जी |

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