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"गलती हमारा या हमारे आदमियों का नहीं है रमाकांत बाबू"| बाहुबली ठेकेदार तिवारी जी, डीएसपी रमाकांत प्रसाद को लगभग डाँटते हुए बोले| "हम उसको पहिलहीं चेता दिए थे कि ई रेलवे का ठेका जाएगा तो ठेकेदार दीनदयाल राय के पास जाएगा नहीं तो नहीं जाएगा, लेकिन उ साला अपनेआप को बहुत बड़का बाहुबली समझ रहा था| अब खैर छोडिये, जो हो गया सो हो गया| जो ले दे के मामला सलटता है, सलटाइए|"

"आप समझ नहीं रहे हैं सर| बात खाली हमारे तक नहीं है कि आपका कहा तुरंत भर में कर दें| हमारे ऊपर भी कोई है, उप्पर से ई मीडिया आउर पब्लिक का टेंशन है सो अलग|" रमाकांत जी ने थोड़ी विवशता दिखाते हुए कहा|

"देखिये, उ सब हमको मत सुनाइये|" तिवारी जी फिर भड़के| "लाश रेलवे ट्रैक पर मिला है, आ उ भी क्षत-विक्षत हालत में| मृतक बहुत शराब पिये हुए था पोस्टमार्टम में साबित भी हो चुका है| अरे दुर्घटना का केस बना के बात खतम कीजिये| सब बात हमहीं को समझाना पड़ेगा, न?

"ठीक है सर, जैसा आप कहिये|" रमाकांत जी बोले| "लेकिन थोडा...."

"हाँ, हाँ ठीक है" तिवारी जी ने उनकी बात को काटते हुए कहा| "गिफ्ट आपके और आपके बड़े साहब, दोनों के घर पहुँच जाएगा| निश्चिन्त रहिये उसके लिये|"

"अरे नहीं नहीं सर, वो बात नहीं है, हमको अपना नहीं....मतलब थोडा और सबको मैनेज करना पड़ता है न! " रमाकांत जी ने उठते हुए कहा| "जो कह रहे हैं हो जाएगा, अब चलते हैं|" कह के वो बाहर निकले और जीप स्टार्ट कर के कोतवाली की तरफ चल दिये|

कोतवाली पहुँचे तो देखा एक युवक को गिरफ्तार कर के लाया गया था| "कौन है ये?" उन्होंने वहाँ तैनात एक दरोगा से पूछा| दरोगा जी कुछ कहते इससे पहले एक महाशय बोले - "अरे हम बताते हैं सर| चोर है चोर| हमारी ही दुकान में काम करता है और हमारी ही दुकान में चोरी कर रहा था|"

रमाकांत जी को गुस्सा आ गया| कड़कते हुए बोले - "क्यों रे, कब से चल रहा है ये सब?"

युवक रोते हुए बोला - "हम चोर नहीं हैं सर| परीक्षा का फार्म भरना था| कल तक लास्ट डेट है| डेढ़ सौ रुपया चाहिए था| कहीं से उपाय नहीं हुआ एही से खाली डेढ़ सौ रुपया निकाले थे|"

रमाकांत जी का पारा अब सातवें आसमान पर था| "साला, एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी| अपने काम के लिये अपना ईमान बेच देगा तू?" कहते हुए एक जोरदार थप्पड़ उन्होंने युवक को लगाया और सिपाही को बोले - "बंद करो साले को|"

दुकान का मालिक गदगद होके बोला - "साहब, आप जैसे ईमानदार पुलिसवालों के कारण ही आज हमारे देश में क़ानून जिन्दा है|"

रमाकांत जी बोले - "पता नहीं भाई, मुझे ऐसे-ऐसे बेईमान लोगों को देख के क्या हो जाता है? आपा खो बैठता हूँ| खैर तुम जाओ| ये साला तो गया दो साल के लिये|" कहते हुए उन्होंने अपनी सिगरेट जलाई और अन्दर की ओर बढ़ गये|

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Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on September 27, 2012 at 10:26am

ये तो अब के बनाते इतिहास का सिर्फ एक पैराग्राफ है. अभी तो ना जाने कितने अध्याय लिखे जा चुके है, और अभी कितने लिखे जायेंगे.....जिसके हाँथ लाठी जी भैस भी उसी की इस देश की सारी सेवा सारा हक़ सभी पर रसूखदारो का अधिकार है ...आम आदमी गरीब बेदखल होता है ........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2012 at 5:45pm

बहुत सुन्दर कहानी...

ईमान, कहानी के माध्यम से व्यस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार का सुन्दर वर्णन किया है. गरीब युवक को जेल, और शक्ति संपन्न ठेकेदार से रिश्वत..
ह्रदय स्पर्शी कहानी हेतु बधाई कुमार गौरव जी 

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