निकिता की शादी हो रही थी| सभी बेहद खुश थे| सारा इंतजाम राजसी था| होता भी क्यों न? निकिता और उसका होनेवाला पति, दोनों ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों में ऊँचे ओहदों पर थे और अच्छे घरों से आते थे| वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान भाई के द्वारा की जानेवाली रस्मों की बारी आई| अब भाई की रस्में करे कौन? निकिता का इकलौता भाई, जो इंजीनियरिंग का छात्र था, परीक्षाएँ पड़ जाने के कारण अपनी दीदी की शादी में आ ही नहीं पाया था| लेकिन इससे कोई समस्या नहीं हुई क्योंकि राज्य के नामी उद्योगपति आर.के सिंहानिया का बेटा और निकिता का मुंहबोला भाई विक्रम सिंहानिया वहां मौजूद था अतः निकिता के माता-पिता ने झट से उसे आगे कर दिया और सबकुछ पुनः सुचारू रूप से चलने लगा|
लावा छिंटाई की रस्म चल रही थी और लोग बातें कर रहे थे - "देखो तो, बिल्कुल अपने भाई की तरह मानती है इसे"| कोई कह रहा था - "अरे पिछले साल राखी बंधाई में इसने निकिता को हीरे की घडी गिफ्ट की थी"| रस्में होती रहीं, लोग आज के युग में मुंहबोले भाई-बहन के इस प्रेम की मिसाल देते रहे| इस सबके बीच गाँव से आया हुआ निकिता का अपना बेरोजगार ममेरा भाई, जिसके घर में निकिता का बचपन बीता था, भीड़ में उपेक्षित बैठा चुपचाप एकटक से शादी में भाई द्वारा हो रही रस्मों को देख रहा था|
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आदरणीय अग्रज अम्बरीश जी........कहानी को सराहने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार.........कई अवसरों पर सचमुच मन ये सोचने के लिए विवश हो जाता है कि क्या आज रिश्ते प्रेम से होते हैं या स्वार्थ से.........संभवतः हर किसी को कभी न कभी ऐसा महसूस हुआ ही होगा.......इसी को दर्शाने का ये मेरा एक प्रयास है........आपकी सराहना ने उत्साह बढ़ाया है........एक बार पुनः धन्यवाद..........
इस स्वार्थी समाज का वास्तविक चेहरा दर्शाती हुई इस बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई अनुज !
कहानी को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय रक्ताले सर............
भौतिक युग और रिश्तों के तौल को दर्शाती सुन्दर लघुकथा. बधाई.
मित्रवर विशाल जी.......आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.......आपको कहानी पसंद आई.........आज की अंधी भागदौड़ वाली जीवनशैली में शायद रिश्ते कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं.......दुनिया मतलबी होती जा रही है..........इसी बात को मैंने इस कहानी के माध्यम से दिखाने की कोशिश की है......आपने सराहा..........आपका आभार......
आदरणीया सीमा जी.......आपकी बात से मैं सहमत हूँ......दुनिया में आज भी ऐसे लोग हैं जो रिश्तों को निभाने में विश्वास रखते हैं.........जिनकी आँखों में पानी होता है.......किन्तु ऐसे भी कम नहीं जो रिश्तों को पहले हैसियत के तराजू पर तौलते हैं फिर आगे फैसला लेते हैं.......मैंने ये कहानी किसी एक घटना से आहत होकर नहीं लिखी बल्कि समाज में घट रही ऐसी अनेक घटनाओं को देखने के बाद ऐसी मतलबी मानसिकता का एक नमूना दिखाने के उद्देश्य से लिखी है........सार्थक एवं सहमतिपूर्ण प्रतिक्रिया देने के लिए आपका हार्दिक आभार.........
भारतीय परम्पराओं के आंचल के नीचे के एक घाव को - एक दर्द को बखूबी उभारा है आपने.......बडी ही सहजता से कर गये बयान उस बेबस और लाचार दिल की बात जो बहुत से लोगों को तो दिखता ही नहीं बयान तो बहुत दूर की बात है.........!!!!
समाज को आइना दिखती तस्वीर ...लेकिन साथ ही ये भी कहूंगी कि यह सिर्फ एक पहलू है जो आपने स्वयं अनुभव किया और आप को चुभा इसलिए शब्दों में परिवर्तित हुआ
इसका एक विपरीत पहलू भी मैंने देखा है इसलिए मै आपसे सहमती रखते हुए भी निराश नहीं हूँ ......शुभकामनाएँ गौरव जी
आदरणीया रेखा जी........कहानी को पसंद करने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद........ये कहानी आज के मशीनी युग की मानसिकता को दर्शाने का मेरा एक प्रयास है......
आदरणीय गुरुदेव.........बिल्कुल सटीक शब्दों में आपने इस कहानी की भावना को संतुष्ट करती प्रतिक्रिया दी है.....दुनिया आज सम्बन्ध नहीं बल्कि हैसियत देखने लगी है.....और उसी हिसाब से नये रिश्ते बनाये और पुराने तोड़े जाते हैं.....ये कहानी भी आज की इसी नयी मानसिकता को दर्शाने का एक प्रयास मात्र है.......सार्थक प्रतिक्रिया देने के लिये आभार...........
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