अमर 'शास्त्री'
छंद: कुकुभ
(प्रति पंक्ति ३० मात्रा, १६, १४ पर यति अंत में दो गुरु)
'लाल बहादुर' लाल देश के, काम बड़े छोटी काया,
त्याग तपस्या और सादगी, आभूषण जो अपनाया,
एक रूपया वेतन लेकर, सबक त्याग का सिखलाया,
जय जवान औ जय किसान का, नारा इनसे ही पाया.
होनहार बचपन से ही थे, प्यार करें भगिनी भ्राता,
निर्धनता में तैर-तैर कर, पार करें गंगा माता,
यद्यपि कुल कायस्थ जन्म है, सर्व धर्म शोभा पायी,
काशी विद्यापीठ 'शाऽस्त्री', की उपाधि सबको भायी,
प्रति सप्ताह एक दिन व्रत कर, था अकाल को निपटाया ,
युद्ध हुआ जब दुष्ट पाक को, पटका घर तक पहुँचाया,
संधि हेतु जब गए रूस को, हुई घात बिगड़ी काया,
अमर हो गए ताशकंद में, हम सबका दिल भर आया
जन्मदिवस है आज आपका, इस पर शपथ अभी लेलें,
सारे मिलकर एक बनें औ, कभी आग से मत खेलें,
भेदभाव दुर्भाव भुला कर, विश्व बनाएँ अविनाशी,
कर्मयोग सब जन अपनाएँ, हों सच्चे भारतवासी,
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
//सादा जीवन और उच्च विचार जो पूज्यनीय शास्त्री जी ने स्थापित किया है वो आज की तिथि में असंभव है | इस महान विभूति को कोटिश: नमन, साथ ही पूज्य बापू को भी नमन, दो विभूतियों का एक ही दिन जन्म दिन होना खुद में एक इतिहास है | //
आपने एकदम सत्य कहा आदरणीय ! बहुत बहुत आभार आपका ! सादर
//जन्मदिवस है आज आपका, इस पर शपथ अभी लेलें,
सारे मिलकर एक बनें औ, कभी आग से मत खेलें,
भेदभाव दुर्भाव भुला कर, विश्व बनाएँ अविनाशी,
कर्मयोग सब जन अपनाएँ, हों सच्चे भारतवासी, //
सादा जीवन और उच्च विचार जो पूज्यनीय शास्त्री जी ने स्थापित किया है वो आज की तिथि में असंभव है | इस महान विभूति को कोटिश: नमन, साथ ही पूज्य बापू को भी नमन, दो विभूतियों का एक ही दिन जन्म दिन होना खुद में एक इतिहास है | आप सभी को शुभकामनायें, आदरणीय अम्बरीश जी द्वारा प्रस्तुत कुकुभ छंद बहुत ही सुन्दर है, आभार और बधाई भाई साहब |
धन्यवाद आदरेया राजेश कुमारी जी !
उत्कृष्ट भाव से सम्रद्ध कुकुभ छंद स्वरुप में ढली इस रचना हेतु बहुत बधाई अम्बरीश जी| लाल बहादुर शास्त्री जी को कोटिश नमन |
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