आज डूबते हुए सूरज को एक बार फिर देखा,
लालिमा से भरा सूरज अलविदा कहता हुआ,
अब सूरज छुप जाएगा बस कुछ ही पलों में,
और आकाश में दिखने लगेगा चाँद वो सुंदर सा,
कभी कभी ये भ्रम भी होने लगता है,
की क्या चाँद और सूरज अलग अलग हैं,
या सूरज ही रूप रंग बदल लौट आता है,
और दो किरदार निभाता है अलग अलग तरह के,
जैसे फिल्मों में एक ही आदमी दो हो जाता है एक होते हुए भी,
आखिर क्यों नहीं ये दोनों एक साथ दिखते हैं,
ये सोचते सोचते ही नज़र खोजने लगी आकाश में,
सूरज अभी डूबा नहीं था,
और उधर बहुत दूर सूरज से चाँद दिखने लगा था,
मानो सूरज से अपने अलग होने का प्रमाण देने आया हो,
दोनों एक ही से हैं, फिर भी ये दूरी सी क्यों है,
दोनों का घर भी एक ही आकाश है फिर भी साथ क्यों नहीं,
ये आकाश इनके पिता की जायदाद रहा हो शायद,
बटवारे में आकाश बटा होगा तो दिल भी बट गए होंगे,
बटवारे सिर्फ जायजाद ही कहाँ बाटते हैं,
बटवारे छीन लेते हैं, दिलों के एहसास भी,
बटवारे जो एक को दो कर देते हैं,
वो भला दो को एक रखें कैसे,
अब आज कुछ कुछ खुलने लगा है राज़,
एक से होते हुए भी इनके अलग अलग रहने का......
Comment
समाज में, परिवार में, घटित होती सच्चाइयों को प्रकृति के सापेक्ष रख कर देखना, व सुन्दर बिम्बों के माध्यम से उनको व्यक्त करना अभिव्यक्ति की रोचकता में चार चाँद लगा देता है. इस हेतु बधाई.
बटवारे सिर्फ जायजाद ही कहाँ बाटते हैं,
बटवारे छीन लेते हैं, दिलों के एहसास भी,
बटवारे जो एक को दो कर देते हैं,
वो भला दो को एक रखें कैसे, ......... बँटवारा वो चाहे परिवार का हो , समाज का हो , राष्ट्र का हो या दिलों का हो कष्टकारी होता ही है . अवमूल्यन के इस दौर में हर क्षेत्र में ह्रास हुआ है , चाहे वह नैतिक मूल्य हो , भाई चारा हो , फ़र्ज़ हो या कुछ और . जैसे - जैसे हम आत्म केन्द्रित होते गए ..... स्वार्थ के वशीभूत होते गए .... वैसे - वैसे हर रिश्तों से कटते गए .... संयुक्त परिवार अब सामाजिक शास्त्र का पाठ बन चुका है . ..... आपने बंटवारे की बात सूरज - चाँद एवं उनके पिता आकाश के माध्यम से कहकर आज के इंसानी समाज को दर्पण दिखाया है . .... इस खुबसूरत प्रस्तुति के बधाई पियूष जी
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