आज मैं शहर छोड़ आया उसका,
वो शहर जो हर पल मुझे,
बस याद उसकी दिलाता था,
वो शहर की जिसमें महकती थी,
बस उसी की खुशबू,
वो शहर जहां हर ओर उसके ही नगमे गूँजा करते थे,
वो वही शहर था जहां रहते थे,
बस चाहने वाले उसके,
आज भी बस शहर ही छूटा है उसका,
पर यादें अभी भी बाकी हैं किसी कोने में,
अपने इस नए शहर में भी बस,
उसकी ही परछाइयों कोई खोजता फिरता हूँ मैं,
बेशक शहर छोड़ दिया उसका मैंने,
पर इस नए शहर में भी मैं उसको ही खोजता हूँ,
बस शहर ही बदला है मैंने, अपना दिल नहीं बदला
वो उस शहर में नहीं इस दिल में रहा करती है...
Comment
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति, हार्दिक बधाई पियूष पन्त जी.
सच कहा मूल स्थान छूटता है या कभी कभी छोड़ना पड़ता है पर हम जहाँ भी जाएँ वहाँ की प्रिय स्मृतियाँ हमारी दिल में सदैव बसी रहती हैं
सुन्दर प्रस्तुति पीयूष जी
बिछड़े पल की कसक लिए बड़ी अच्छी रचना है, बधाई आपको
अब इस नए शहर में तो मन नहीं लगता होगा उखडा उखडा रहता होगा दिल तो उसी शहर के अन्दर जा रमड़ता होगा,
आपके कव्य से आपके कष्ट को समझा जा सकता है | काव्य के माध्यम से सन्देश हेतु बधाई |
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