आज चाँद दिखा आसमान में पूरा,
और वो बुढिया भी जो कात रही है,
सूत कई वर्षों से बैठी हुई तन्हा,
मैं हैरान हूँ, और परेशान भी,
क्या चाँद पर भी लोग हम जैसे ही रहते हैं,
क्या वहाँ भी बूढ़ों को यूं ही छोड़ दिया जाता है,
अकेला और तन्हा, विज्ञान कहता है कि,
कोई बुढ़िया नहीं रहती है चाँद पर,
पर मुझको तो मेरी माँ ने तो बचपन बताया था ,
सूत कातती उस बुढ़िया के बारे में,
वो चाँद मामा है हमारा हमने ये बचपन से सुना है,
तो क्या मेरी माँ को उसके घर का हाल मालूम न होगा,
मेरे मामा के घर कि ये बुढ़िया,
मेरी नानी तो नहीं है कहीं,
वो भी तो तन्हा ही रहती थी,
जब मेरे मामा के घर में थी........
Comment
आपकी रचना ने मन को झकझोर दिया दिल तक मर्म पहुचाने में सफल हुई रचना हार्दिक आभार लिखते रहिये शुभकामनाएं
प्रतीकों में इस रचना ने वह कुछ कहा है जो हृदय को भेद गया.. . मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ, पियूषजी.
आप सभी का हार्दिक शुक्रिया..........
बुजुर्गों के प्रति कैसे भाव कालांतर से चले आ रहे है, चाँद में दिख रहे चित्र और अपनी नानी दादी अम्मा से बचपन से सुन रहे-
कहानी के आदर पर कल्पना का सुन्दर चित्रं किया हां बधाई पियूष कुमार पन्त भाई
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना आ. पियूष पन्त जी
रचना झकझोर देने में सक्षम है, बिम्ब और प्रतिक के माध्यम से बहुत बड़ी बात कह गए है पियूष जी, बधाई स्वीकार करें |
सुन्दर प्रयास पियूष जी , विज्ञान और आस्था का सुन्दर चित्रण किया है आपने . बुजुर्गों के प्रति आपकी यह सोच तारीफ़ के योग्य है ..... बधाई
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