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(ये मेरी पहली कोशिश है ग़ज़ल लिखनें की... जहाँ गलती हो कृपया करके बे'झिझक बताएं... शुक्रिया...!!)


सख्त रास्तों पर भी आसान सफ़र लगता है...
ये मुझे माँ की दुआओं का असर लगता है...!!

हो जाती है, बोझिल आँखें जब रोते-रोते...
माँ से फ़िर मुश्किल चुराना ये नज़र लगता है...!!

नहीं आती नींद इन मखमली बिस्तरों पर...
माँ की थपकियों का यादों में जब मंज़र लगता है...!!

सोचती हूँ कैसे चुकाऊं पाउंगी क़र्ज़ मैं तेरा...
ममता के समंदर में मेरा प्यार इक लहर लगता है...!!

एक अरसा हुआ मेरी माँ नहीं थी सोई, जब...
मैंने इक बार कहा था माँ मुझे रातों को डर लगता है...!!

ना रहा जब से साया मेरी माँ का मुझपे...
जानें क्यों बेगाना-सा मुझे मेरा घर लगता है...!!

लम्हा कोई हो, हर पहर हो चली सहर लगता है...
तुझसे मिलनें को माँ 'चाहत'-ऐ-दिल को क्यों रास्ता अब ज़हर लगता है...!!

::::::::जूली मुलानी::::::::
::::::::Julie Mulani:::::::

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Comment

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Comment by Julie on December 15, 2010 at 8:22pm
Thanks Tarun jee...
Comment by tarun sondhi on December 12, 2010 at 4:04pm

bahut accha,,

beautiful,,,,

Comment by Julie on October 24, 2010 at 9:32pm
शुक्रिया 'नविन जी'... गलतियां बताएँगे ये उम्मीद थी हमे...!!
Comment by Julie on October 23, 2010 at 12:08am
Deep jee... Humnein yaha apne pehle comment khud hi kaha hai ke ye Munnavar Rana se insapired hai... Aur OBO ke Admin nein isey khud approval diya hai... Humein Shabashi ka koi lalach naa kabhi tha aur naa hoga... Par nakal karne ka yun ilazaam naa lagaye plz...!!
Comment by DEEP ZIRVI on October 22, 2010 at 8:42pm
mujhe afsos hai ki mei is gzl ko shabaash nhi keh paaon ga
Comment by DEEP ZIRVI on October 22, 2010 at 8:41pm
anusrn kijiye, anukrn kijiye,lekin
सख्त रास्तों पर भी आसान सफ़र लगता है...
ये मुझे माँ की दुआओं का असर लगता है...!!
is trh nkl mt kijiye pleeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeze
Comment by Julie on October 22, 2010 at 7:06pm
विकास राना जी आपनें सही पहचाना... ये दो शेर ही नहीं बल्कि मेरी पूरी ग़ज़ल उनके सारे "माँ" के ऊपर लिखे शेरों से ही inspired हैं... हो सकता सिर्फ शब्दों का थोडा हेर-फेरहि हो बस... पर जैसे के हमनें कहा ये मेरी पहली ग़ज़ल है तो पहली बार किसी से inspired होना लाज़मी था... और अगर गलत होता कुछ तो OBO के Admin इसे approval ना देते... और आपके सुझावों का पूरी तरह से पालन करनें की कोशिश रहेगी... अगली बार आपको थोडा तो improvememt दिखेगा ही... शुक्रिया...!!
Comment by vikas rana janumanu 'fikr' on October 22, 2010 at 3:26pm
हो जाती है, बेमिसाल आँखें जब रोते-रोते...
माँ से फ़िर मुश्किल चुराना ये नज़र लगता है...!!

नहीं आती नींद इन मखमली बिस्तरों पर...
माँ की थपकियों का यादों में जब मंज़र लगता है...!!

सोचती हूँ कैसे चुकाऊं पाउंगी क़र्ज़ मैं तेरा...
ममता के समंदर में मेरा प्यार इक लहर लगता है...!!

ना रहा जब से साया मेरी माँ का मुझपे...
जानें क्यों बेगाना-सा मुझे मेरा घर लगता है...!!


aaapke bahut achy khyaal haiN, bas rawangi ki zaroorat hai ,

apki pahli ghazl hai to yahi khunga ki aap..... likhne ke saath seekhna bhi shuru kar deN .. jyda mushkil nahi

sirf do haftoN mai aap ... rawangi la sakti hai, agar aap mehnat kareN to .........
baaki khyaal aapke bahut achy hai, soch ka dyara bhi acha hai
rabt acha bithaya haia apne misroN pe

bas sahi disha pakdeN ...!!

best of luck
Comment by vikas rana janumanu 'fikr' on October 22, 2010 at 3:23pm
सख्त रास्तों पर भी आसान सफ़र लगता है...
ये मुझे माँ की दुआओं का असर लगता है...!!

एक अरसा हुआ मेरी माँ नहीं थी सोई, जब...
मैंने इक बार कहा था माँ मुझे रातों को डर लगता है...!!


juli ji shayed aap munnawar sahab se prabhavit ho gayee haiN ...

sakht rahoN mai bhi asaan safar lagta hai
ye meri maa ki duaoN ka sar lagta hai

upar ke do sher unke sheroN se takraa rahe haiN.. aap check kar len
Comment by Julie on October 22, 2010 at 11:54am
दोस्तों... हमनें दूसरे शेर में गलती से 'बेमिसाल' टाइप कर दिया है जबकि सही शब्द "बोझिल" था... इस भूल के लिए क्षमा चाहती हूँ...!! -जूली

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