खूबसूरत दृश्य
हम गढ़ते रहे,
शब्द चित्रों की
सफलता के लिए |
शहर धीरे धीरे
बन बैठा महीन
दिख रहा है हर कोई
कितना जहीन
गाँव दण्डित है
सहजता के लिए || १ ||
घर की दीवारों
में हाहाकार है
लक्ष्मी का रूप
अस्वीकार है
कौन सोचे
नव प्रसूता के लिए || २ ||
जब से हम सब
खुद पे अर्पण हो गये
बस तभी शीशा से
दर्पण हो गये
या सुपारी हैं
सरौता के लिए || ३ ||
हाशियों में भी
नहीं संवेदना
हर नए पन्ने में
खुद की कल्पना
हैं सभी आतुर
नवलता के लिए || ४ ||
अनकही ग़ज़लें भी
चोरी हो गईं
पंक्तियाँ भावों से
कोरी हो गईं
हम तखल्लुस भर हैं
मक्ता के लिए || ५ ||
मित्रों
गीत विधा में हाथ आजमा रहा हूँ, कहीं कुछ चूक हुई हो तो अवश्य बताएँ, आभारी रहूँगा
सादर
Comment
आदरणीय गणेश जी,
ह्रदय तल से आपको बारम्बार धन्यवाद
धन्यवाद लक्षमण प्रसाद जी
आपकी सदाशयता को बारम्बार प्रणाम
सौरभ जी सादर धन्यवाद
गीत का द्वितीय प्रयास आपसे अनुमोदित हुआ यह मेरे लिए हर्ष का विषय है
नवालता को नवलता पढ़ें (टंकण त्रुटि है )
//हम तखल्लुस भर हैं
मक्ता के लिए//
आहा !! क्या बात कही है वीनस भाई, स्वयम के अस्तित्व को सिमित करती पक्तियां बहुत कुछ अनकहे कह जाती हैं, बहुत ही सुन्दर नव गीत, बहुत बहुत बधाई |
जब से हम सब
खुद पे अर्पण हो गये
बस तभी शीशा से
दर्पण हो गये ------------बेहतरीन पंक्तिया उम्दा अभिव्यक्ति भाई वीनस जी
वीनस भाई, सर्वप्रथम तो आपको इस सद्-प्रयास पर हार्दिक बधाई.
इस नवगीत के कई बिम्ब बरबस ध्यान खींचते हैं.
शहर धीरे धीरे
बन बैठा महीन
दिख रहा है हर कोई
कितना जहीन
गाँव दण्डित है
सहजता के लिए
वाह ! आखिरी पंक्तियों पर रोमांच हो आया. सबसे अव्वल, शहर के लिये महीनी शब्द दिल को भा गया.
बहुत-बहुत बधाई, इस गठन पर !
हाशियों में भी
नहीं संवेदना
हर नए पन्ने में
खुद की कल्पना
हैं सभी आतुर
नवालता के लिए
वाह ! क्या सटीक संप्रेषण है ! दिल से बधाई इस बंद पर.
एक बात, शब्द ’नवालता’ है या ’नवलता’ ?
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