एक ताज़ा ग़ज़ल पेश ए खिदमत है गौर फरमाएं -
वो मेरी शख्सियत पर छा गया तो |
ये सपना है, मगर जो सच हुआ तो |
दिखा है झूठ में कुछ फ़ाइदा तो |
मगर मैं खुद से ही टकरा गया तो |
मुझे सच से मुहब्बत है, ये सच है,
पर उनका झूठ भी अच्छा लगा तो |
शराफत का तकाज़ा तो यही है,
रहें चुप सुन लिया कुछ अनकहा तो |
करूँगा मन्अ कैसे फिर उसे मैं,
दिया अपना जो उसने वास्ता तो |
रहीम इस बार तो 'कुट्टी' न होना,
अगर मैं राम से 'मिल्ली' हुआ तो |
रकीबों में वो गिनता है मुझे और,
गले भी लग गया मुझसे मिला तो |
वो रहमत कर रहे हैं सिर्फ मुझ पर,
कहीं दिल कहर ढाने का हुआ तो |
हमें बस शायरी का शौक है, पर,
यही इक शौक भारी पड़ गया तो |
वो मानेगा मेरी बातें, ये सच है,
करेगा दिल की ही ज़िद पर अड़ा तो |
जरूरत से जियादः टोकते हैं,
कोई दिखला गया गर आईना तो |
लगा रहता है मुझको डर बराबर
मेरा हर शे'र उनको भा गया तो |
खुले हो जिस तरह तुम उनसे 'वीनस',
अचानक तोड़ लें वह राबिता तो |
बने हो यूँ तो आतिशदान 'वीनस',
डरे भी हो धुँआ उठने लगा तो |
Comment
चन्द्रेश जी शेअर को पसंद करने और प्रोत्साहित करने के लिए शुक्रगुजार हूँ
राज साहब आभार
आदरणीया राजेश कुमारी जी ह्रदय से आभारी हूँ
बने हो यूँ तो आतिशदान 'वीनस',
डरे भी हो धुँआ उठने लगा तो |
वाह बहुत खूब !!
रकीबों में वो गिनता है मुझे और,
गले भी लग गया मुझसे मिला तो |
बने हो यूँ तो आतिशदान 'वीनस',
डरे भी हो धुँआ उठने लगा तो |------बहुत खूबसूरत ग़ज़ल लिखी वीनस जी मजा आ गया पढ़ कर हर शेर जानदार है और ये तो बहुत बहुत पसंद आये ढेरों दाद कबूल करें
सौरभ जी, अनिल जी, डॉ. प्राची जी, संदीप जी, और गणेश जी
आप सभी को हृदल तल से धन्यवाद
ग़ज़ल को पसंद किया इससे निश्चित ही मेरा हौसला बढ़ा है उत्साहित हुआ हूँ कुछ और कह सकने को ...
सादर
बने हो यूँ तो आतिशदान 'वीनस',
डरे भी हो धुँआ उठने लगा तो |
nice expression
वाह भाई वीनस वाह, क्या बात है, मतला , हुस्ने मतला और दो मक्ता, एक को हुस्ने मक्ता कहूँ तो ....
//रहीम इस बार तो 'कुट्टी' न होना,
अगर मैं राम से 'मिल्ली' हुआ तो |//
इस शेर पर लख लख बधाई, खुबसूरत ग़ज़ल है भाई, इस अभिव्यक्ति पर बहुत बहुत बधाई और दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार हो |
राज साहब,
बहर तो आपने खूब पहचानी और जो हाले दिल आपने बयान किया है यह तो सभी के साथ हो कर गुज़रता है
बिलकुल वैसे ही जैसे ताज़ा ताज़ा इश्क का मुआमला हो तो आशिक को हर तरफ माशूक ही दिखता है :))))
बैसे बहर के नाम में मुसम्मन नहीं लगेगा क्योकि यह तब लगता है जब अरकान में ४ रुक्न हों यहाँ तीन हैं इसलिए मुसद्दस लिखेंगे और एक जिहाफ भी है जो "मुफाईलुन" को "फ़ऊलुन" करता है जिसका नाम "महजूफ़" है
तो बहर का नाम हुआ = "हजज मुसद्दस महजूफ़"
ग़ज़ल को अपने पसंद किया इसके लिए शुक्रगुजार हूँ
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