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ग़ज़ल:भूख करप्शन

भूख करप्शन महंगाई बेकारी है
कैसी आगे बढ़ने की लाचारी है |

ट्यूशन के पैसे से पिक्चर देख रहे
अपने ही मुस्तकबिल से गद्दारी है |

वृद्धावस्था पेंशन पर दिन काट रही
बड़े हुए बच्चों की माँ बेचारी है |

काँटों का इक ताज सूली ले आओ
मेरी ईसा बनने की तैयारी है |

साठ साल से हरा भरा फल फूल नहीं
पौधे की जड़ में कोई बीमारी है |

आप कहाँ से इतनी खुशियाँ ले आये
क्या कुर्सी से आपकी रिश्तेदारी है |

किसे सफाई दे और किसका मुंह रोके
हर लड़की अपने हालात की मारी है |

सभी को तोहमत मिली सभी ने छल भोगा
कोई सीता है कोई गांधारी है |

एक चौधरी दुनिया भर को नचा रहा
जब चाहे जिसपर करता बमबारी है |

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on November 3, 2010 at 7:30am
Ashish yadav जी धन्यवाद !!! सृजन की लौ जलती रहे और ज़िन्दगी पटरी पर चलती रहे !!!!!
Comment by आशीष यादव on November 2, 2010 at 5:59pm
Bikul yatharth ghazal kahi hai aapne.
Comment by Abhinav Arun on October 29, 2010 at 3:13pm
नवीन जी धन्यवाद ! आज कल पढने और प्रतिक्रिया देनेवाले कम ही मिलते हैं | ओ.बी.ओ. पर आप जैसे सहृदयों का साथ मिला आभारी हूँ |

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"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
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