For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : कम रहे आखिर


पांव रिश्तों के जम रहे आखिर
हम हकीकत में कम रहे आखिर |

जिनके दिल पर भरोसा पूरा था
उनके हाथों में बम रहे आखिर |

तीर उस ओर थे दिखाने को
पर निशाने पर हम रहे आखिर |

दिन में लगता है भोग पंचामृत
शाम को पी तो रम रहे आखिर |

सच कहे और लड़े सिस्टम से
उसमे दम तक ये दम रहे आखिर |


नोट संसद में जेल में हत्या
काम के क्या नियम रहे आखिर |

जाने क्यूँ महलों तरफ जाते हुए
यह कदम अपने थम रहे आखिर |


खूब आलाप जोड़ झाला हो
पर तराने में सम रहे आखिर |

दिन हों अब्बा से कड़क लेकिन शाम
माँ की ममता सी नम रहे आखिर |

दीन का आदमी को खौफ रहे
या खुदा यह करम रहे आखिर |

Views: 364

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on November 2, 2010 at 2:23pm
धन्यवाद शेष जी बहुत बहुत और दिवाली मुबारक!!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 31, 2010 at 5:24pm
मैं समझ गया था अरुण भाई की यह टंकण का दोष है, टंकण करते समय शब्द कुछ इधर उधर हो गये है |
Comment by Abhinav Arun on October 31, 2010 at 5:12pm
श्री बागी जी वो पांचवां शेर आखिर ग़लत हो ही गया ,दर असल डायरी में सही लिखा है जैसा आपने बताया है |यहाँ टाइप करते गलत हो गया ,आपने ध्यान दिलाया बड़ी मेहरबानी वरना लोग क्या समझते ,आश्चर्य होता है कई बार प्रिव्यू देखने के बाद भी ये चूक रह गयी |बहरहाल आभार और खेद के साथ पुनः एडिट कर भेज रहा हूँ |
Comment by Abhinav Arun on October 31, 2010 at 5:07pm
सर्वश्री वीरेंद्र जी ,नवीन जी और बागी जी रचना पसंद की आप सब ने आभार |और अच्छा करने का प्रयास करूँगा |ओ.बी.ओ. में अब अच्छा लगने लगा है |यह मंच खूब आगे जाए ये कामना है |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 31, 2010 at 10:44am
दिन में लगता है भोग पंचामृत
शाम को पी तो रम रहे आखिर |

दोमुहा व्यक्तित्व का पोल खोलते हुए शे'र, बहुत ही बढ़िया कहा आपने,

पाचवे शे'र के मिसरा सानी मे कुछ गड़बड़ी दीखता है,रदीफ़ का दोष आ रहा है | एक बार अरुण भाई नजर दोहराना चाहेंगे,
सच कहे और लड़े सिस्टम से
उसमे दम तक रहे ये दम आखिर |
मेरे ख्याल से यदि यह कहे कि..................उसमे दम तक ये दम रहे आखिर, या कुछ और |

बाकी सभी शे'र अच्छे लगे | बधाई कुबूल करे |
Comment by Veerendra Jain on October 31, 2010 at 12:31am
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल... अरुण जी
बहुत बहुत बधाई..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service