For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“अनिता, यार जल्दी करो, ऐसे तो दोपहर का शो भी निकल जाएगा !” विजय अपनी पत्नी अनिता से बोला !

“बस अब सब्जी कट ही गई, इसे गैस चढ़ाकर तैयार हो जाऊंगी, टेंसन नॉट, समय पर पहुँच जाएंगे !” अनिता सब्जी काटते हुवे कह रही थी कि तभी, “आह...!” अचानक चाकू हाथ पर लग गया !

“अरे अनिता..... ध्यान कहाँ था..? छोड़ो ये सब्जी, चलो मै दवा लगा देता हूँ !” विजय चौकता हुवा बोला, और फिर जख्म पर दवा लगाकर पट्टी किया ! इसके बाद सब्जी काटकर गैस पर चढ़ा दिया ! इधर अनिता तैयार होने की कोशिश में थी !

“अरे यार, बोलना चाहिए न... हाथ में ताजे घाव की पट्टी है, फिर भी....” विजय बोल ही रहा था कि अनिता बीच में ही बोल पड़ी, “तैयार तो होना ही था, और अब तो हो भी गई, बस ये चूड़ियाँ....?”

“लाओ, आज अपनी प्यारी बीवी को मै अपने हाथों से चूड़ियाँ पहनाऊंगा..!” कहके, विजय चूड़ी पहनाने लगा !

“विजय...कहाँ हो भाई..?” संजय, सुनिता के साथ कमरे में प्रवेश करते हुवे बोला, “अरे ये क्या कर रहे हो..?” चूड़ी पहनाते देख थोड़ा चौका और फिर बोला, “खैर ! ये लो तुम्हारी गाड़ी की चाभी, हमारी ट्रिप हो गई..! अच्छा, बहुत थक गए हैं, अभी चलते हैं !” कहकर, संजय सुनिता को खींचते हुवे चल दिया !

“देखा, कितना प्यार करते हैं विजय भाई अनिता से, और एक तुम...” सुनिता बाहर आकर संजय से बोली!

“चुप रहो... प्यार है कि जोरू की गुलामी....नपुंसक कहीं का !” कहते हुवे संजय का सीना गर्व से तन गया !  

-पियुष द्विवेदी ‘भारत’

 

Views: 840

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 4, 2012 at 7:42am

सादर धन्यवाद आदरणीय सूर्या जी....!

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 3, 2012 at 4:05pm

पीयूष जी ! बहुत अच्छा सन्देश देती बढ़िया कहानी के लिए आपको  हार्दिक बधाई। आमतौर पर पुरुषों द्वारा ऐसे वाक्य सुनने को मिल जाते हैं  और हम सभी उसको इग्नोर कर देते हैं। ये हमारी मानसिक कुंठा और विकलांग मानसिकता का प्रतीक है। बहुत बहुत बधाई 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 7:48am
सादर धन्यवाद वीनस भाई !
Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 7:48am
आदरणीय राजेश जी, इस कथा को आपने अपना बहुमूल्य समय देते हुवे, अपने बेशकीमती विचारों से नवाजा, बहुत बहुत धन्यवाद !
Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 7:44am
आदरणीय प्राची दी, आपने कथा को को अपना बहुमूल्य समय दिया, सादर धन्यवाद ! यूं ही स्नेहाशीष सदैव रखें, पुनः धन्यवाद !
Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 7:41am
आदरणीय सौरभ जी, बिलकुल सही कहा आपने ! यहाँ तो कथा का भाव कुछ भिन्न है, अन्यथा कई परिदृश्यों में सुनिता जैसियों के मन में पति द्वारा अपमानित होने से उत्पन्न क्षोभ अन्यों के सुखी जीवन से इर्ष्या उत्पन्न कर देता है ! और फिर वो धीरे-धीरे घरों को तोड़ने वाली बन जाती हैं, और समाज उन्हें एक विशेष नाम 'घरफोड़नी' से जानने, सूचित करने लगता है !
बहरहाल, आपने कथा को समझ अपने बेशकीमती विचार रखे, इससे इस कथा के प्रति पर्याप्त निश्चिंतता मिली ! सादर कोटिशः धन्यवाद !
Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 7:34am
आदरणीय सीमा जी, आपकी तरफ ये प्रतिक्रिया इस कथा के प्रति आश्वस्त करती है ! धन्यवाद !
Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 7:33am

Ajay sir, you understood the story and explained your true feelings on it. Very very thanks..

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 7:30am
आदरणीय अशोक जी, धन्यवाद !
Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 7:29am
संदीप भाई जी, आपने कथा को समझ अपने विचार रखे, सादर धन्यवाद !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service