"प्रेमहीन जीवन शून्य है, ये मुझे बेहतर पता है ! इसलिए उसकी पीड़ा को समझता हूं !" आकाश शून्य की ओर देखते हुवे प्रतीक से बोला !
"किसकी पीड़ा? तुम्हारी प्रेमिका?" प्रतीक बोला !
"ना! एक मित्र है, बहुत प्रेम करता है एक से, पर कह नही पा रहा है !"
“कौन मित्र?”
“अभिनव, कॉलेज वाला...!”
“जानता हूं ! किसको चाहता है? रहती कहाँ है?”
“जैसा कि उसने बताया है, तुम्हारे ही मोहल्ले में !”
“क्या बात कर रहे हो, ऐसा है, तब तो तुम्हारे दोस्त की समस्या हल..!” अबकी प्रतीक उत्तेजित था !
“पता नही ! आसान नही लगता !”
“आसान कर देंगे ! दो प्रेमियों को मिलाने से बड़ा पुण्य क्या ! पर प्रेमिका का नाम तो बताओ?”
“अनुराधा....!”
“क्या, उसकी इतनी हिम्मत, जिन्दा नही छोडूंगा कमीने को, खून कर दूँगा !” प्रतीक अचानक गुस्से में आ गया था ! अनुराधा उसकी बहन का नाम था !
-पियुष द्विवेदी ‘भारत’
Comment
सादर धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण जी...!
सच्चे प्रेम की समझ और हिम्मत का सन्देश देती बात को कहानी का रूप देने पर बधाई स्वीकारे श्री पियूष द्वेदी जी
सादर धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी... बहुत ही सही संदर्भ दिया है आपने, प्रेम-प्रेम चिल्लाने वाले, अथवा प्रेम की बात आने पर कृष्ण को उदाहरण रखने वाले लोगों में से मुश्किल से पाँच प्रतिशत लोग ही (शिक्षित-अशिक्षित सभी वर्गों में) ऐसे होंगे, जो कृष्ण के प्रेम-विषयक इस महान सोच को समझे, तिसपर अधिकत्तर लोगों से तो इस कार्य हेतु कृष्ण की आलोचना ही सुनने को मिलती है !
बहुत सही. मानवीय समझ की धरातल को सक्षम शब्द मिले हैं और तदनुरूप कथ्य आधार.
यह सही भी है, सभी कृष्ण की समझ को नहीं जीते जो प्रेम के अति उच्च स्तर का अपने जीवन में न केवल निर्वाह करते हैं बल्कि प्रेम के उस स्वरूप को अन्य के जीवन में लागू भी करवाते हैं.
अग्रज बलराम की इच्छा के विरुद्ध कृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा को अर्जुन के साथ भाग जाने में सहयोग दिया था, कारण कि अर्जुन सुभद्रा से प्रेम करते थे. कृष्ण की समझ से दुर्योधन सुभद्रा के लिये बलराम और अन्य पारिवारिक सदस्यों द्वारा मान्य वर भर थे, वहीं अर्जुन सुभद्रा हेतु स्वीकार्य वर थे. कृष्ण ने हार्दिक स्वीकृति को अनुमोदित किया न कि बलराम के हठ को, जो सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से करवाने पर तुले हुए थे.
पियुषजी, मेरे उपरोक्त संदर्भ को आज के लिहाज से देखा और समझा जाय, जहाँ ’ऑनर किलिंग’ और ’खाप’ सम्मत बलात् निर्णय ज़िन्दग़ियों को अकाल मृत्यु देने पर आमादा हैं.
आपकी इस लघु-कथा पर मेरी हार्दिक बधाई.. .
आदरणीय राजेश कुमारी जी... आपको कहानी पसंद आयी, ये मेरे श्रम की सार्थकता है !सादर धन्यवाद !
आदरणीय शालिनी जी.... आपको कहानी बेहतर लगी, बहुत बहुत धन्यवाद !
आदरणीय रक्ताले जी... बहुत बहुत धन्यवाद...!
आदरणीय सूर्या भाई जी... शुक्रिया !
आदरणीय प्राची दी.. सादर धन्यवाद ! इंटरनेट की अनुपलब्धता के कारण तत्काल प्रत्युत्तर नही कर पाया !
प्रिय पियूष जी, सुन्दर अभिव्यक्ति। दोहरी मानसिकता को सुन्दर शब्द मिले हैं।
दो प्रेमियों को मिलाने से बड़ा पुण्य क्या ! पर प्रेमिका का नाम तो बताओ?”
“अनुराधा....!”
“क्या, उसकी इतनी हिम्मत, जिन्दा नही छोडूंगा..................
हार्दिक बधाई इस लघु कथा पर
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