For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अमृत समान हे चाय मेरी, मै तुमको भूल न पाऊंगा

                                                                      

                                                                      

तुम शीतल, ग्रीष्म, उभय तापी;

तुम  बहुप्रकार, तुम  बहुरंगी !

हो  रंग, रूप  व  ताप  कोई,

पर थकित जनों की हो संगी !

हो जग के हित में तत्पर तुम, तुममे क्यों दोष बताऊंगा !

                                                      अमृत   समान  हे  चाय  मेरी, मै तुमको भूल न पाऊंगा !

 

लगभग  दुनिया  में  छाई  तुम,

इक  नाम  नया, कुछ रूप नया !

भारत  में   तो   पाया  तुमको,

जिस राज्य, नगर या गाँव गया !

हे विश्वव्यापिनी प्राणप्रिये, छोड़ तुम्हे कहाँ जाऊंगा ?

अमृत समान हे चाय मेरी, मै तुमको भूल न पाऊंगा !

 

इक  रूप  तुम्हारा  विकृत  सा,

जिसको  कि कहते काढ़ा लोग !

खांसी,   सर्दी   याकि   सरदर्द,

होते   इससे  खत्म  ये  रोग !

हे सुलभ औषधी जीवन की, क्योंकर तुमको बिसराऊंगा !

अमृत  समान  हे चाय मेरी, मै तुमको भूल न पाऊंगा !

 

पर  जग ये बड़ा कृतघ्नी है,

उपकार  नहीं   कोई माने !

कहता, करती तुम देह हानि,

दुर्गुण  तुममे  झूठ बखाने !

 पर  हे  सुस्वादे! मै मन से, सच गुण  तुम्हारे गाऊंगा !

 अमृत  समान  हे चाय मेरी, मै तुमको भूल न पाऊंगा !

                                                                                        -पियुष द्विवेदी ‘भारत’

Views: 1926

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 14, 2012 at 10:31am

आदरणीय राजेश कुमारी जी, साभार  धन्यवाद !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 14, 2012 at 10:28am

आह ह्ह्ह चाय इस सर्दी में और आपका चाय की प्रशंसा में ये गीत किसे पसंद नहीं आएगा इस वक़्त तो इस गीत की हर बात सच्ची लग रही है बहुत पसंद आया ये गीत बधाई आपको 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 14, 2012 at 10:22am

धन्यवाद आदरणीय सीमा जी, सुझावों पर ध्यान देते हुवे, त्रुटियों के सुधार का हर संभव प्रयास करूँगा !

Comment by seema agrawal on December 14, 2012 at 10:13am

चाय के प्रेम में डूबे प्रेमी ने अपनी प्रेमिका की अच्छी स्तुति प्रस्तुत की है नया कथ्य जिसकी निश्चित ही सभी प्रशंसा करेंगे ही मैं भी बधाई देती हूँ 
 अब यदि शैली की बात करें तो वह भी बहुत खूब  ३२-३२ मात्राओं के पहियों पर सफ़र करता आपका गीत  संतुलित ढंग से प्रयाण कर रहा था |पर अचानक शायद शब्द और भाव रूपी मोह के काँटों ने पहियों के असंतुलित कर दिया  और  शिल्प को बिगाड़ दिया अपनी इन पंक्तियों पर दृष्टि डालिए एक बार फिर 

//हे विश्वव्यापिनी प्राणप्रिये, छोड़ तुम्हे कहाँ जाऊंगा ?//

इक रूप तुम्हारा विकृत सा ,जिसको कि कहते काढा लोग 

खांसी सर्दी याकि सरदर्द होता इससे ख़त्म ये रोग 

कहता करती तुम देह हानि दुर्गुण तुमने झूठ बखाने 

पर हे सुस्वादे  मैं मन से सच गुण तुम्हारे गाऊँगा 

bold की हुए पंक्तियों को यदि मेरी बात ठीक लगे तो एक बार फिर से देख लीजिये ...

शुभकामनाएं 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 29, 2012 at 8:43am

आदरणीय रक्ताले जी, बेशक विज्ञान ने भी अब चाय की संप्रभुता (गुणवत्ता) को स्वीकार कर लिया है, पर फिर भी अक्सर ऐसे लोग मिल जाते हैं, जो हाथ में चाय का कप लिए हुवे ये सलाह देते हैं कि चाय, सेहत के लिए हानिकारक होती है !

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 19, 2012 at 7:13pm

पियूष जी 

            सादर, कोई देह हानि नहीं भाई अब तो विज्ञान भी कहता है चाय से त्वचा खिली खिली रहती है. बहुत सुन्दर रचना. हार्दिक बधाई.

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 18, 2012 at 2:47pm

सादर धन्यवाद रणवीर भाई......!

Comment by Ranveer Pratap Singh on November 17, 2012 at 7:34pm

@ पियुष द्विवेदी 'भारत'वाह अति सुन्दर रचना, हमारे भोपाल शहर में एक कहावत है की प्राण जाए पर चाय न जाए... चाय हमारे देश का राष्ट्रीय पेय घोषित होने वाला है २१ अप्रैल २०१३ को... एक बार फिर बधाई... 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 17, 2012 at 7:01pm

शुक्रिया आदरणीय प्रदीप जी....

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 17, 2012 at 3:07pm

चाय तो लाभकार है 

मुझे लगती प्यारी 

पियूं न जब तक इसे 

छायी रहे खुमारी 

बधाई, चाय दर्शन हेतु.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम्"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
Wednesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Jul 12
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service