For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

  उस बस में जगह की वैसी ही किल्लत थी, जैसी मुंबई में पानी की है ! पर ये किल्लत मेरे पहुँचने के बाद हुई, इसलिए मुझे सीट मिल गई थी, और मै बैठा था ! अगला स्टॉपेज आया, यहाँ पर्याप्त लोग उतर गए, कुछ चढ़े भी, पर उतरने की मात्रा ज्यादा थी ! इसलिए अब बस में कुछ हल्कापन था ! बस में चढ़ने वालों में एक लड़की भी थी, जोकि मेरे पास आकर बोली, “थोड़ी जगह मिलेगी?” मै अपनी जगह से जरा सा खिसककर उसको जगह दिया ! उस लड़की के तत्काल बाद, याकि उसके पीछे ही एक लड़का भी बस में चढ़ा, उस लड़के के विषय में मुझे अजीब बात ये लगी कि बस में पर्याप्त खाली जगह होने के बावजूद भी, वो मेरी सीट के बगल में आके खड़ा हो गया ! पर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया ! बस चल दी ! बस में अब पर्याप्त शांति थी ! मैंने सीट की पुश्त से सिर टिकाकर आँखें मूँद लीं, सफर अभी लंबा था !

  कुछ ही समय बीता था कि मुझे अपने बगल में बैठी लड़की में कुछ हरकत महसूस हुई ! मैंने आँखें खोलीं, तो देखा कि मेरी सीट के बगल में खड़ा वो लड़का, उस लड़की का दुपट्टा खीँच रहा है और वो बारबार अपना दुपट्टा सम्हाल रही है ! जब मैंने उधर देखा, तो उस लड़के ने दुपट्टा छोड़ दिया ! वैसे, अगर वो नही छोड़ता तो भी मै वापस आँखे बंद करने के सिवाय कुछ नही करता, क्योंकि इस समाजसेवा में पड़कर मुझे अपना इंटरव्यू संकट में नही डालना था ! आज मेरा इंटरव्यू था, मै वहीँ जा रहा था ! खैर, मैंने फिर आँखें मूँद लीं ! थोड़ी देर बाद हरकतें फिर शुरू हो गईं, क्योंकि मुझे महसूस हो रहा था कि वो खुद को बचाने का प्रयास कर रही है ! मगर अबकी मैंने आँखें नही खोलीं ! मुझे नींद आ गई !

“क्या चाहते हो तुम?” इस जोरदार आवाज से अचानक मेरी नींद टूटी ! मैंने देखा कि ये वही लड़की थी, जिसे वो लड़का छेड़ रहा था ! वो अभी उसी लड़के से मुखातिब थी, “तुम पिछले स्टॉपेज से ही मेरे पीछे पड़े हो, बस में भी आ गए ! वहाँ स्टॉपेज पे तो बड़ी रानी-महारानी बनाने की बातें कर रहे थे ! वैसे, तुम कहाँ के, कौन-से राजा हो जो मुझे रानी बनाओगे ! कितना कमाते हो ? जरा बताओ तो ?” वो लड़की इतना कहकर चुप हो गई !

 अब बारी उस लड़के की थी ! वो बोला, “मै एक कम्प्युटर इंजीनियर हूं ! इस शहर की टॉप फलां कंपनी में ! मै कितना कमाता हूंगा, इसका अंदाजा तुम खुद लगा सकती हो ! समझी मैडम !”

“तुम जिस टॉप फलां कंपनी की बात कर रहे हो, उस टॉप कंपनी के मैनेजर का ऑफर मै रिजेक्ट कर चुकी हैं ! सिर्फ इसलिए कि मुझे वहाँ भी तुम्हारे जैसे ही कुछ जीव दिखाई दिए और मै ऐसे लोगों के साथ काम नही कर सकती ! और जहाँ तक बात कमाई और नौकरी की है, तो देश-विदेश से कईयों ऑफर पड़े हैं ! पर मै ऐसी जगह जाना चाहती हु, जहाँ तुम्हारे जैसे जीव ना हों ! तुम्हारे विश्वास के लिए एक ऑफर लेटर तो तुम्हे अभी दिखाती हूं !” ये कहते हुवे उसने अपने पर्स से एक कागज निकालकर दिखाया ! वाकई में वो मैनेजर की पोस्ट के लिए ऑफर था ! वो फिर बोली, “अब तो तुम्हे पता चल होगा कि तुम क्या हो और मै क्या ?”

 वो लड़का अवाक् सा खड़ा था ! शायद अब बोलने के लिए उसके पास कुछ था भी नही ! कुछ पल बाद वो बड़ी मुश्किल से बोला, “सों...सा...सॉरी...आय एम रेली सॉरी फॉर दैट ! मुझे...!” वो बोल ही रहा था कि वो उसकी बात काटके बीच में ही बोल पड़ी, “किस बात की सॉरी और क्यों? वहाँ स्टॉपेज पे जब मेरी कमर में हाथ डाल रहे थे, जब मेरा दुपट्टा खींच रहे थे, तब सॉरी नहीं हुई तो अब किस बात की सॉरी ! तुम मेरे पीछे पड़े हो, शायद मै तुम्हे पसंद हूं ! चलो एक ऑफर रखती हूं – मुझसे शादी कर लो – बस एक हाँ करो, तो आगे आनेवाले मंदिर पे ही शादी कर लेंगे ! मुझे कोई दिक्कत नही है ! जल्दी जवाब दो !”

 सब उस लड़की को हैरानी से देख रहे थे ! और वो लड़का, उसके मुह से तो आवाज ही नही निकल रही थी ! बड़ी मुश्किल से बोला, “शा...शादी...मै कैसे तुमसे शादी कर सकता हूं ! कोई जान-पहचान नहीं, मम्मी-पापा से पूछे बगैर, और वो भी मंदिर में ! नहीं...कभी नही !” इतना कहकर वो चुप हो गया !

“क्यों?” वो लड़की ज़रा तेज आवाज में बोली, “मेरे कमर में हाथ पहचान के डाला था या मम्मी-पापा से पूछकर ! जब इसके लिए पूछने की जरूरत नही तो फिर शादी के लिए क्यों ? तेरे जैसे छः नम्बरी से तो मै खुद ही शादी नही करूंगी !” इतना कहकर वो चुप हो गई !

 अब सब उस लड़के को देख रहे थे, उसकी हालत तो फोटो खींचने लायक थी !एकदम सिर झुकाए, निरुत्तर, पाषाण-प्रतिमा सम खड़ा था कि तभी बस रुकी और वो लड़की उतर गई ! संयोग से मुझे भी यहीं उतरना था ! मै भी उतर गया ! बस चल दी !

 उतरकर, मै अपनी मंजिल की ओर बढ़ने ही वाला था कि तभी मेरी निगाह उसी लड़की पर पड़ी ! मैंने देखा कि वो अपना ऑफर लेटर निकाल कर एक कार में बैठी लड़की को दे दी ! फिर कुछ पल बात करके वो कार वाली लड़की चल दी ! मुझे कुछ समझ न आया कि आखिर इसने अपना ऑफर लेटर दूसरे को क्यों दे दिया ? अंततः मुझसे नही रहा गया और मै जाकर उससे पूछ पड़ा, “हेलो ! तुमने अपना ऑफर लेटर उसे क्यों दे दिया ?” मुझे डर था कि कहीं इस प्रश्न के बाद मेरी भी हालत उस बस वाले लड़के जैसी मत हो जाय ? पर ऐसा कुछ नही हुवा ! वो बड़े शांत लहजे में बोली, “वो ऑफर लेटर उसीका था, मेरा नही ! इसके अलावा भी बस में जो कुछ कहा वो हिंदी सिनेमा के डायलोग्स से अधिक कुछ नही था ! मेरी हकीकत ये है कि मै एक साईबर कैफे में पढ़ाती हूं ! उसवक्त जो कहा वो उस लड़के के लिए था ! ये सब सुनने के बाद उस छः नम्बरी की हालत तो तुमने देखी ही ! ऐसे लोगों से दबना ही गुनाह है !” इतना कहकर वो चली गई !

 मेरे होठों पर हल्की मुस्कान आ गई थी ! मै सोच रहा था, “अबतक बहुतों चप्पल, सैंडल, तमाचों आदि के किस्से सुने और देखें थे ! पर ये बड़ा ही विलक्षण तमाचा है जो शायद एक पढ़े-लिखे लड़के को दिग्भ्रमित होने से बचा लेगा, बशर्ते कि उसे ये याद रहे !” यही सब सोचते हुवे मै चल दिया !

 

-पियुष द्विवेदी ‘भारत’

Views: 825

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 16, 2012 at 9:29pm

पियूष जी

           सादर,  लडकी कि विलक्षण मति का परिचय कराती सुन्दर लघुकथा के लिए बधाई स्वीकारें.

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 7, 2012 at 7:04am

सादर आभार वीनस भाई जी !

Comment by वीनस केसरी on December 7, 2012 at 1:43am

// जो कहानी यथार्थ के जितना सन्निकट होगी, उतना ही बेहतर भी होगी ! //

निश्चित ही
इसलिए तो पुनः बधाई दी है मित्रवर

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 6, 2012 at 7:36pm

आदरणीय सौरभ जी, बधाई हेतु धन्यवाद व सुझाव पर प्रयास रहेगा !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2012 at 3:10pm

प्लॉट बढिया है. अगर आप मानें तो बधाई के साथ-साथ यही निवेदन है कि कहन और प्रवाह पर सतत प्रयास होता रहे. अच्छी रचनाओं की सभी को प्रतीक्षा रहती है. हमें भी.

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 6, 2012 at 7:08am

''वैसे यह कहाने कम सच्ची घटना अधिक लग रही है'''

जो कहानी यथार्थ के जितना सन्निकट होगी, उतना ही बेहतर भी होगी ! क्योंकि, कहानियां तो जीवन में ही होती हैं, और वहीँ से लिखी जाती हैं !

कहानी को पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद वीनस भाई !

Comment by वीनस केसरी on December 6, 2012 at 1:24am

बधाई
सुन्दर कहानी है
वैसे यह कहाने कम सच्ची घटना अधिक लग रही है
पुनः बधाई

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 5, 2012 at 3:12pm

आदरणीय अरुण जी, आपने कहानी को सराहा, सादर धन्यवाद !

Comment by Abhinav Arun on December 5, 2012 at 2:22pm

आदरणीय श्री भारत जी , कहानी में एक दृश्य को बड़ी जीवन्तता के साथ अपने प्रस्तुत किया है । यह हर शहर में होने वाली एक आम सी घटना है पर इस प्रस्तुति में जो सन्देश है वह अंत में सशक्त रूप से मुखरित हुआ है । ऐसी कथाओं से लोग सीख लें तो सृजन सार्थक हो जाए !! हार्दिक बधाई आपको !!

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 5, 2012 at 10:51am

जी, इस कहानी के अंत में देखिए, "पर ये बड़ा ही विलक्षण तमाचा है जो शायद एक पढ़े-लिखे लड़के को दिग्भ्रमित होने से बचा लेगा" उस लड़के ने जो लिहाज दिखाया वो उसकी शिक्षा थी, किन्तु उसने उस लड़की को छेड़ा ये उसके दिग्भ्रमित होने का सूचक है !

 आपने कहानी को समय देते हुवे उसके संदेश को समझा, सादर धन्यवाद आदरणीय राजेश कुमारी जी...!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service