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ओ..री कुरसी माई । (व्यंग गीत)

चुनाव  में  हारे  हुए  नेताजी  की  व्यथा ?

ओ..री  कुरसी  माई । (व्यंग गीत)

हमको  तू  ना  मिली...(२)

सारी  खुशियाँ  मिले  भी  तो  क्या  है ...!

हमरी  लुटिया  डूबी....ओ..री  कुरसी  माई...!

हमरी सरकार बने भी तो क्या है ....!

१.

बीवी  के  पैरों  की  अब  धूल  हूँ ।

तुझ से  बिछड़ा  हुआ  फूल (FOOL) हूँ ।

साथ  तेरा  नहीं, सारी  जनता  पीटे  भी  तो  क्या  है ....!

हमरी  लुटिया  डूबी....ओ..री  कुरसी  माई...!

हमरी सरकार बने भी तो क्या है ....!

२.

तुझ से  लिपट  कर, कुछ कमा  लेते  हम ।

कोयला  भी  नहीं,  जहाँ  हीरों  से  कम...!

हाथ  काले  नहीं, अब  हाथ  मले  भी  तो  क्या  है ....!

हमरी  लुटिया  डूबी....ओ..री  कुरसी  माई...!

हमरी  सरकार  बने  भी  तो  क्या  है ....!

३.

तरसता हूँ  मैं, तू `मोदी`में है मगन...!

फिर जाने कब  होगा,अपना मिलन...!

लाख   टुच्चे  यहाँ, मेरा  दिल  अब  जले  भी  तो  क्या  है...!

हमरी  लुटिया  डूबी....ओ..री  कुरसी  माई...!

हमरी  सरकार  बने  भी  तो  क्या  है ....!

हमको  तू  ना  मिली...(२)

सारी  खुशियाँ  मिले  भी  तो  क्या  है ...!

मार्कण्ड  दवे । दिनांकः ०४-१२-२०१२.

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Comment by Abhinav Arun on December 5, 2012 at 2:47pm

:-) अति सुन्दर मार्कंडेय जी कुर्सी की महिमा अनूठी गीतिका के ज़रिये बखानी आपने ! हार्दिक बधाई आपको !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 5, 2012 at 11:52am

इस व्यथा गीत में मुझे नयनों से झरते हुए बड़े बड़े आंसू भी नजर आ रहे हैं पर क्या करूँ बस रुमाल ही दे सकती हूँ ---हाहाहा बहुत रोचक रचना 

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