अब तुम पर यकीं कर पायें किस तरह
हम और अब तुम्हे आजमायें किस तरह
ये ख़याल उनको सताता ही रहा
वो मुझको सताएं तो सताएं किस तरह
ये कत्ल हुआ जाने या जाने वो कातिल
क़त्ल करने लगीं ये निगाहें किस तरह
वक़्त के हरेक टुकड़े में खोया तुम्हें
वो गुजरा हुआ वक़्त लायें किस तरह
वो जो हंसकर मिलें बात कुछ तो बढे
अब बुतों से भला बतलाएं किस तरह
वो पूछते हैं फिर रहे तरीके प्यार के
मैं पूछता फिरा तुम्हे भुलाएं किस तरह
बस तेरी है तमन्ना एक तेरी आरज़ू
जिक्र फिर हम किसी का चलायें किस तरह
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Comment
abhar sharma ji .... :)
पुष्यमित्र उपाध्याय मित्र प्यार को इक नया आवाम देती आपकी ये ग़ज़ल खासकर ये शे'र तो दिल में उतर गया.
वो पूछते हैं फिर रहे तरीके प्यार के
मैं पूछता फिरा तुम्हे भुलाएं किस तरह
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