न किसी खाप न किसी मौलवी से होगा
हमारे इश्क का फैसला तो हमीं से होगा
ये कह कर ठुकरा गया वो आसमाँ मुझे
हमारा वास्ता ही क्या तेरी जमीं से होगा
यूं दुआ को न तरस, यूं दवा को न ढूंढ
ज़ख्म इश्क ने दिया, ठीक शायरी से होगा
बेफिकर घूमता है, इश्क से अनछुआ
मुखातिब वो भी तो कभी दिल्लगी से होगा
यूं भी जिन्दगी किसी से बेताल्लुक नहीं होती
तेरा मिलना ही जरुर बुजदिली से होगा
मेरी ग़ुरबत पे कर कुछ निगाह कुछ करम
ये अंधेरों का मसला हल रौशनी से होगा
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Comment
सलाह पर जरुर अमल होगा खान सर, वीनस जी
सुन्दर प्रयास है
बधाई स्वीकारें
श्रेष्ठजन के कहे पर ध्यान दें साधते साधते सब कुछ सध जायेगा
बेफिकर घूमता है, इश्क से अनछुआ
मुखातिब वो भी तो कभी दिल्लगी से होगा.......
मेरी ग़ुरबत पे कर कुछ निगाह कुछ करम
ये अंधेरों का मसला हल रौशनी से होगा...
सुंदर अभिवयक्ति .... बधाई स्वीकार करें
जनाब पुष्यमित्र जी ,,,अच्छे ख्यालात के साथ उम्दा अशआर कहने के लिए मुबारक बाद ,,,, नाचीज़ का एक मशविरा अगर कुबूल हो तो,,,,काफ़िये पर ध्यान दीजिये ,,,मौलवी , शायरी , दिल्लगी ,रौशनी के साथ ,,हमीं, जमीं ,, ठीक नहीं लगा ...
वाह मित्र वाह क्या बात है दिल को छूती ग़ज़ल खास कर ये दो शे'र तो बहुत ही शानदार हैं, दाद कुबूल कीजिये
बेफिकर घूमता है, इश्क से अनछुआ
मुखातिब वो भी तो कभी दिल्लगी से होगा
मेरी ग़ुरबत पे कर कुछ निगाह कुछ करम
ये अंधेरों का मसला हल रौशनी से होगा
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