चाँद को भी हम कब तलक देखें
न देखें तुम्हे तो क्या फलक देखें
खुद चला आया जो आफताब आँखों में
फिर क्या किसी शम्मा की झलक देखें
आने का यकीं दे चले थे मुस्कुरा के वो
कुछ और हम ये तनहा सड़क देखें
वो न देखें मेरे ये लडखडाये से कदम
देखना है तो मेरी आँखों में चमक देखें
क्या देखते हैं आप यूं काफियों को घूर कर
मिल जाए जो जहां बस सबक देखें
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Comment
क्या देखते हैं आप यूं काफियों को घूर कर
मिल जाए जो जहां बस सबक देखें
बहुत सुन्दर भावात्मक प्रस्तुति
//sahi kaha sir//
लेकिन आपकी पद्य-क्षमता को देखते हुए इस मंच को पूरा भरोसा है कि शीघ्र ही आपसे सुगढ ग़ज़लें सुनने को मिलेंगीं. .
sahi kaha sir
क्या देखते हैं आप यूं काफियों को घूर कर
मिल जाए जो जहां बस सबक देखें
नहीं भाई नहीं, हम सिर्फ़ काफ़िये को एकदम नहीं देख रहे हैं. बहुत कुछ देख रहे हैं और नोट भी कर रहे हैं.
अवश्य ही सुधार की बहत गुँजाइश है.
सादर आभार वीनस भाई,
रविकर जी
खुबसूरत रचना ।
सुन्दर भाव-प्रवाह ।।
आभार आदरणीय ।।
वो न देखें मेरे ये लडखडाये से कदम
देखना है तो मेरी आँखों में चमक देखें
वाह भाई सही नसीहत दी है ....
बहुत खूब
शुभकामनाएं
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