अथिति देबोभवा
पहले की सोच
अथिति होता था भगवान्
घर में होती थी खुशियाँ
और बनते थे पकबान
बदला अब परिवेश और
बदल गई हे सोच
इस्नेक्स में सिमट गया
पहले का प्रीतभोज
प्रथम दिवश तो गर्मजोशी से
होती खातिरदारी
दुतीय दिवश से आवभगत में
चलने लगती आरी
कल तो खाए मालपुए
रसगुल्ले मैसुरपाग
आज पतली दाल हे
और कद्दू की साग
कद्दू की साग होता
जाने का निवेदन
क्योंकि कमर तोड़ महगाई में
कम पड़ता हे बेतन
तृतीय दिवश पूंछा जाता
क्या खिचड़ी खाओगे
अतिथि देवो भव चुके
किस गाड़ी से जाओगे
एह्तेयातन होती दुआर पर
तख्ती या दरवान
आगंतुक या मेहमान
हम कुत्तों से सावधान
Dr.Ajay Khare
Comment
सर त्रुटियों के कारण रचना का मज़ा किरकिरा हो रहा है, सर यह सिर्फ मेरा मानना है इसे अन्यथा न लें सादर
Adarniya bagi ji abhi suruaat he aap sabhi ke margdarshan and prerna se nikhaar aayega bas aap isi tarah kaan khichte rahiye danyabaad
हड़बड़ी में गड़बड़ी
यही है आधुनिक महमान बाजी
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