For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिया ह्रदय में रख दूंगा

मन में मेरे जो आएगा लिख कर उसको रख दूंगा
चाह नहीं कुछ नाम कमाऊँ दिया ह्रदय में रख दूंगा !
घर में मेरे जो आएगा मान दिए खुश कर दूंगा
जीवन मेरे जो छाएगा प्यार किये जीवन दूंगा
उपवन मेरा जो सींचेगा खुशहाली छाया दूंगा
पथ में राही साथ चले मुस्कान भरे स्वागत दूंगा
मै एक तपस्वी कांटे बोकर प्राण भी लो ,
कभी नहीं कह पाऊँगा ..
मन में मेरे जो आएगा लिख कर उसको रख दूंगा ………..

सूरज के गर साथ चलेंगे गर्मी हम पाएंगे ही
अंगार अगर हम ह्रदय रखेंगे सब भुन जायेंगे ही
गिरिवर कानन बोझ सहेंगे मन भायेंगे शीतलता पाएंगे ही
माँ में ममता आंसू होंगे स्वर्ग धरा जीवन सफल बनायेंगे ही
मै एक दानी दान किये छाया पानी भी ना चाहूँगा -
कभी नहीं कह पाऊँगा ..मन में मेरे जो आएगा लिख के ....


रहा ताकते शून्य धरा से जल जीव यहीं पर हिले कहीं -कुछ न कुछ आता ही है
सत्कर्म, धर्म, स्वीकार-भूल से मोक्ष मिले धन -मन पावन होता ही है
मधु मीठी कुछ लोग कहें घाव रखे पर दुःख होता -मन उनका रोता ही है
दीपक पूजे राह दिखाए आग लगे श्मशान कहीं -घर मातम छाता ही है
पेड़ लगा संघर्ष किये भी -फल चाहूं ना -मै योगी -कभी नहीं कह पाऊँगा
मन में मेरे जो आएगा लिख के…………..


एक पेड़ कितनी शाखाएं लाल सबुज पातों में लिपटे झूमे ही सावन होता
चाँद जभी तारों संग खेले बुझे खिले बदली ढँक खोले कैसा मन-भवन होता
ऊँच -नीच आडम्बर रत लाल कमाए दूर पड़े हम -मन मिलता ना रहता रोता
कर्म शर्म श्रम प्यार न देखे श्रुत भूले वैभव होता मन उनका खता है धोखा
तात -मात अपनापन भूले -पाथर पूजे स्वर्ग रहूँगा -कभी नहीं कह पाऊंगा
मन में मेरे जो आएगा ......

क्लिष्ट -कुटिल ना मुझको भायें मन को -आरोपण क्यों ?? जीवन यों ही धांधां है
सरल -साधु नैतिकता ना उपदेश न चाहें जीवन को जिसने बांधा है
भ्रम पालें मत मानें ना दर्पण देखें ऋण भूले -कर लेता जो ही गाथा है
सीकर- को जो सी-कर पाए मारे पाथर रस खोएं फट सकता तेरा माथा है
सर्व सकती है मेरे अन्दर ढाल मिला विष-पान किये भी अमर रहूँगा
कभी नहीं कह पाऊँगा मन में मेरे जो आएगा लिख के उसको रख दूंगा ...
चाह नहीं कुछ नाम कमाऊँ दिया ह्रदय में रख दूंगा !

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर

25.12.2012

Views: 788

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2012 at 3:02pm

भावनाओं और विचारों को यथावत शब्द रूप देने के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय भ्रमर जी.

सादर

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 26, 2012 at 9:47pm

आदरणीय  और सम्माननीय बागी जी बिलकुल सच कहा आपने कभी कभी वक्त बेवक्त कितने तो सपने की तरह विचार आ के भी चले जाते हैं समा बंधता नहीं और यादें कुछ शब्द रह जाते हैं वक्त की कमी व्यस्तता आप जैसे लोगों से दूर रहना बहुत सी कमी खलती है फिर भी यदा कदा कुछ सकारात्मक बन जाता है आप सब के प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार जय श्री राधे 

भ्रमर 5 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 26, 2012 at 9:42pm

प्रिय अशोक भाई आप की बधाई सर आँखों पर अपना स्नेह और प्रोत्साहन यों ही बरसाते रहें जय श्री राधे 

भ्रमर 5 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 26, 2012 at 9:41pm

बार बार पढ़ रही हूँ बहुत कुछ है इस रचना में .जो आपके जीवन भर के अनुभव की निचोड़ और आपके भावमय मन की तस्वीर भी दिखा रही है ..

आदरणीया महिमा जी जय श्री राधे आप की बातें सुन मन गद गद हुआ हम कवि  लेखक गण ऐसे ही एक दूजे की मनः स्थिति समझते रहें और जो बन पड़े समाज के लिए जहां भी रहें जिस हाल में रहें योगदान देते रहें तो आनंद और आये 

बहुत बहुत आभार आप का 
भ्रमर 5 

 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 26, 2012 at 9:37pm

आदरणीय विजय जी स्वागत है आप का जय श्री राधे ये प्रकृति चित्रण आप के मन को छू सका लिखना सार्थक रहा आभार 

भ्रमर 5 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 26, 2012 at 9:36pm

आदरणीय कुशवाहा जी आप का स्नेह और स्वीकारोक्ति मिली हम धन्य ही अपना स्नेह बनाये रखे 

आभार 
भ्रमर 5 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 26, 2012 at 9:35pm

प्रिय अनंत जी प्रोत्साहन के लिए आभार व्यस्तताएं हमारे मन मस्तिष्क को झकझोर देती हैं आप सब से दूर रहना बड़ा बुरा लगता है पर मजबूरियों के आगे कदम ताल करते बढ़ जाने में ही उचित लगता है 

भ्रमर 5 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 26, 2012 at 9:35pm

आदरणीय भ्रमर जी, अक्सर हमारे दिमाग में विचार उमड़ते घुमड़ते रहतें हैं जिन्हें सिलसिलेवार बांधना होता है, उन्ही सब ख्यालों को बाँधने का बहुत ही खुबसूरत प्रयास है यह रचना, अच्छी अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें |

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 26, 2012 at 9:33pm

उसी पथ के हम भी है राही, साथ तुम्हारा मै दूंगा,

कांटे बोए जो पथ पर, स्वागत में अपने कर से फूल उसे मै दूंगा 

आदरणीय लड़ी वाला जी मन खुश हो गया काश ऐसे ही बुलंद आवाज से  अच्छे लोग अच्छाइयों का साथ दें बुराइयों को समूल उखाड़ फेंकने में आसानी होगी 

होगी बहुत बहुत आभार 
भ्रमर 5 

 

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 26, 2012 at 6:33pm

सुन्दर रचना आदरणीय भ्रमर जी बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
7 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service