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विकास बनाम इंसानियत – दर

रोज़ होती रही चर्चायें
बैठकों पे बैठकें
कार्यालयों से लेकर चौपालों तक
कारखानों से लेकर शेयर बाज़ारों तक
हर जगह
कोशिशें जारी हैं
कैसे बढ़े
कितना बढ़े
कहाँ-कहाँ कितनी गुंजाईशें है
सभी लगे हैं
देश विकसित हो या विकासशील
या हो अविकसित
मगर चिंतायें
सबकी एक है
कैसे बढ़े विकास-दर
कैसे बढ़े व्यापार
बाज़ार भाव
कैसे बढ़े निर्यात
फिर चाहे
मौत का सामान ही क्यों न हो
व्यापार बढ़ना चाहिए
विकास-दर बढ़ती रहनी चाहिए
और इंसानियत की दर
घटते - घटते
यहाँ तक पहुँच गई
कि अब
चर्चा करने में शर्म आती है

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Comment by Ashok Kumar Raktale on December 30, 2012 at 11:02am

व्यापार बढ़ना चाहिए
विकास-दर बढ़ती रहनी चाहिए
और इंसानियत की दर
घटते - घटते
यहाँ तक पहुँच गई
कि अब
चर्चा करने में शर्म आती है................कुछ आँखों कि मगर शर्म ही मर गयी है.

सुन्दर रचना आदरणीय नादिर खान साहब.सादर.

 

Comment by Shyam Narain Verma on December 29, 2012 at 5:13pm

BAHOT    KHOOB

Comment by vijay nikore on December 29, 2012 at 12:30pm

और इंसानियत की दर
घटते - घटते
यहाँ तक पहुँच गई
कि अब
चर्चा करने में शर्म आती है

बहुत सच कहा है।

विजय निकोर

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