दुनिया केवल पैसे की
प्रो. सरन घई, संस्थापक, विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा
ऐसे की ना वैसे की, ये दुनिया केवल पैसे की।
ना कीमत है इसे धर्म की,
ना कीमत है इसे कर्म की,
इसको तो परवाह है केवल बिरला, टाटा जैसे की।
ना साधू ना जोगी पुजता,
ना ईश्वर ना अल्ला रुचता,
यहाँ तो केवल जय-जय होती ठन-ठन बजते पैसे की।
समाचार ना लेख सुहाते,
ना गीता ना वेद ही भाते,
यहाँ लोग लिटरेचर पढ़ते फ़िल्मी मैटर जैसे की।
ना सब्जी, ना दाल, ना रोटी,
ना भाती अब बाटी मोटी,
इनको लगती भूख पास्ता, ताको, बर्गर जैसे की।
प्रवचन और उपदेश ना भाएँ,
भजन-कीर्तन से घबराएँ,
ये तो थिरकें डिस्कोथिक में लगी हो मिर्ची जैसे की।
ना माँ-बाप, ना भाई-बहिनें,
ना साड़ी, ना कपड़े-गहने,
अब तो पहनें जींस फटी, पहनें भिखमंगे जैसे की।
अच्छी बातें नहीं सुनेंगे,
जीवन में गुण नहीं गुनेंगे,
पढ़ेंगे कविताएँ फ़िजूल कवि ’सरन घई’ के जैसे की।
Comment
ब्यंग लेकिन सत्य ,,पूरा पूरा आचरण जीवन का आधुनिकता पर पैनी नजर से भरपूर कविता ,,बधाई हो श्री सरन जी
प्रवचन और उपदेश ना भाएँ,
भजन-कीर्तन से घबराएँ,
ये तो थिरकें डिस्कोथिक में लगी हो मिर्ची जैसे की।
बिलकुल सत्य ! बहुत खूब
Bahot khoob.................
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