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दुनिया केवल पैसे की

दुनिया केवल पैसे की

प्रो. सरन घई, संस्थापक, विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा

ऐसे की ना वैसे की, ये दुनिया केवल पैसे की।

ना कीमत है इसे धर्म की,

ना कीमत है इसे कर्म की,

इसको तो परवाह है केवल बिरला, टाटा जैसे की।

ना साधू ना जोगी पुजता,

ना ईश्वर ना अल्ला रुचता,

यहाँ तो केवल जय-जय होती ठन-ठन बजते पैसे की।

समाचार ना लेख सुहाते,

ना गीता ना वेद ही भाते,

यहाँ लोग लिटरेचर पढ़ते फ़िल्मी मैटर जैसे की।

ना सब्जी, ना दाल, ना रोटी,

ना भाती अब बाटी मोटी,

इनको लगती भूख पास्ता, ताको, बर्गर जैसे की।

प्रवचन और उपदेश ना भाएँ,

भजन-कीर्तन से घबराएँ,

ये तो थिरकें डिस्कोथिक में लगी हो मिर्ची जैसे की।

ना माँ-बाप, ना भाई-बहिनें,

ना साड़ी, ना कपड़े-गहने,

अब तो पहनें जींस फटी, पहनें भिखमंगे जैसे की।

अच्छी बातें नहीं सुनेंगे,

जीवन में गुण नहीं गुनेंगे,

पढ़ेंगे कविताएँ फ़िजूल कवि ’सरन घई’ के जैसे की। 

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Comment

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Comment by SUMAN MISHRA on January 24, 2013 at 2:50pm

ब्यंग लेकिन सत्य ,,पूरा पूरा आचरण जीवन का आधुनिकता पर पैनी नजर से भरपूर कविता ,,बधाई हो श्री सरन जी

Comment by Yogi Saraswat on January 24, 2013 at 2:49pm

प्रवचन और उपदेश ना भाएँ,

भजन-कीर्तन से घबराएँ,

ये तो थिरकें डिस्कोथिक में लगी हो मिर्ची जैसे की।

बिलकुल सत्य ! बहुत खूब

Comment by Shyam Narain Verma on January 24, 2013 at 10:07am

Bahot khoob.................

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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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