For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : सन्नाटे के भूत मेरे घर आने लगते हैं

सन्नाटे के भूत मेरे घर आने लगते हैं

छोड़ मुझे वो जब जब मैके जाने लगते हैं

 

उनके गुस्सा होते ही घर के सारे बर्तन

मुझको ही दोषी कहकर चिल्लाने लगते हैं

 

उनको देख रसोई के सब डिब्बे जादू से

अंदर की सारी बातें बतलाने लगते हैं

 

ये किस भाषा में चौका, बेलन, चूल्हा, कूकर

उनको छूते ही उनसे बतियाने लगते हैं

 

जिसकी खातिर खुद को मिटा चुकीं हैं, वो ‘सज्जन’

प्रेम रहित जीवन कहकर पछताने लगते हैं

-----------------------------------------------

(यह ग़ज़ल स्वरचित एवं अप्रकाशित है)

Views: 679

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 6, 2013 at 11:46pm

बहुत बहुत शुक्रिया रक्ताले  साहब

Comment by Ashok Kumar Raktale on March 6, 2013 at 11:40pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी सादर, सुन्दर और मनोरंजक प्रस्तुति वाह गुनगुनाकर मन प्रफुल्लित हो गया. सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 16, 2013 at 11:50am

upasna siag जी, धन्यवाद

Comment by upasna siag on February 14, 2013 at 6:32pm

बहुत बढ़िया जी ..

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 14, 2013 at 3:57pm

बहुत बहुत धन्यवाद SANDEEP KUMAR PATEL साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 14, 2013 at 3:56pm

बहुत बहुत शुक्रिया Arun Srivastava साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 14, 2013 at 3:55pm

आदरणीय विजय जी बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 14, 2013 at 3:53pm

आदरणीय सौरभ जी , आपका अपार स्नेह और आशीर्वाद यूँ ही बना रहे। बैक्टीरिया तो नहीं, आप जैसे विद्वानों से मिलने जुलने का परिणाम है। हार्दिक धन्यवाद।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 14, 2013 at 3:50pm

वीनस जी की निगाह में आ गई ग़ज़लगोई सफल हो गई। बहुत बहुत शुक्रिया साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 14, 2013 at 3:49pm

बहुत बहुत शुक्रिया नादिर ख़ान साहब, स्नेह बना रहे

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service