For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : तेरे अंदर भी तो रहता है ख़ुदा मान भी जा

बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२

-------------------------------------

करके उपवास तू उसको न सता मान भी जा

तेरे अंदर भी तो रहता है ख़ुदा मान भी जा

 

सिर्फ़ करने से दुआ रोग न मिटता कोई

है तो कड़वी ही मगर पी ले दवा मान भी जा

 

गर है बेताब रगों से ये निकलने के लिए

कर लहू दान कोई जान बचा मान भी जा

 

बारहा सोच तुझे रब ने क्यूँ बख़्शा है दिमाग 

सिर्फ़ इबादत को तो काफ़ी था गला मान भी जा

 

अंधविश्वास, अशिक्षा और घर घुसरापन

है गरीबी इन्हीं पापों की सजा मान भी जा

-----------------

(स्वरचित एवं अप्रकाशित)

Views: 610

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 9, 2013 at 10:19am

बहुत बहुत धन्यवाद Ashok Kumar Raktale साहब

Comment by Ashok Kumar Raktale on March 8, 2013 at 10:26pm

सिर्फ़ करने से दुआ रोग न मिटता कोई

है तो कड़वी ही मगर पी ले दवा मान भी जा...........वाह! बहुत खूब.

उम्दा गजल.सादर दिली दाद कुबुलें आदरणीय धर्मेन्द्र जी.

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 8, 2013 at 2:28pm

बहुत बहुत धन्यवाद vijay nikore जी, स्नेह बनाये रखें

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 8, 2013 at 2:27pm

शुक्रिया Laxman Prasad Ladiwala जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 8, 2013 at 2:27pm

आभारी हूँ by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 8, 2013 at 2:26pm

बहुत बहुत धन्यवाद PRADEEP जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 8, 2013 at 2:26pm

बहुत बहुत धन्यवाद Saurabh Pandey जी, स्नेह यूँ ही अनवरत बनाये रखें

Comment by vijay nikore on March 7, 2013 at 6:20pm

धर्मेन्द्र जी,

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 7, 2013 at 5:01pm

गजल का प्रत्येक शेर ही उम्दा है श्री धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई स्वीकारे 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 7, 2013 at 4:02pm

धर्मेंद्र भाई नमस्कार ! क्या खूब कहा है जनाब॥कुर्बान जाऊन ऐसी ग़ज़ल पे।

एक एक शेर बोल रहा है....

पूरी ग़ज़ल ही शानदार हुई है॥

दाद कुबूल हो !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service