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ग़ज़ल : अब तो मक्खी यहाँ कोई भी निगल जाता है

बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२

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भिनभिनाने से तेरे कौन बदल जाता है

अब तो मक्खी यहाँ कोई भी निगल जाता है

 

यूँ लगातार निगाहों से तू लेज़र न चला

आग ज्यादा हो तो पत्थर भी पिघल जाता है

 

जिद पे अड़ जाए तो दुनिया भी पड़े कम, वरना

दिल तो बच्चा है खिलौनों से बहल जाता है

 

तुझ से नज़रें तो मिला लूँ प’ तेरा गाल मुआँ

लाल अख़बार में फौरन ही बदल जाता है

 

थाम लेती है हवा प्यार से इसको, वरना

खोपड़ी तोड़ तो इक बूँद का बल जाता है

 

खाद, मिट्टी व नमी चाहिए गुलशन के लिए

पेड़ काँटों का तो सहरा में भी पल जाता है

---------------------------------------------

(स्वरचित एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 25, 2013 at 7:37pm

आदरणीय Dr.Prachi Singh जी, Amod Kumar Srivastava जी, Rajesh Kumar Jha जी, ram shiromani pathak जी, Ashok Kumar Raktale जी,  Laxman Prasad Ladiwala जी, Saurabh Pandey जी आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया कि आप सबने रचना को अपना समय दिया एवं अपने विचारों से अवगत कराया। यह स्नेह बना रहे।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 30, 2013 at 1:37pm

भिनभिनाने से तेरे कौन बदल जाता है

अब तो मक्खी यहाँ कोई भी निगल जाता है.. 

उस कहावत को इस रूप में देख कर हैरानी बाद में. आपके अंदाज़ को सलाम पहले.

 

जिद पे अड़ जाए तो दुनिया भी पड़े कम, वरना

दिल तो बच्चा है खिलौनों से बहल जाता है.. .... ...  . वाह भाई वाह ! बहुत जान है इस शेर में.

 

तुझ से नज़रें तो मिला लूँ प’ तेरा गाल मुआँ

लाल अख़बार में फौरन ही बदल जाता है.. .... ......... फिर से कमाल .. लाल अख़बार के लिए बधाई.

 

थाम लेती है हवा प्यार से इसको, वरना

खोपड़ी तोड़ तो इक बूँद का बल जाता है........ ...  ... . का हो ?

 

खाद, मिट्टी व नमी चाहिए गुलशन के लिए

पेड़ काँटों का तो सहरा में भी पल जाता है.......  ..     इस दम के लिए फिर से दाद... .

एक बहुत ही दमदार ग़ज़ल को साझा करने के लिए हार्िक धन्यवाद, धर्मेन्द्र भाई.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 23, 2013 at 9:41am

सुन्दर गजल, बहुत उम्दा, बधाई श्री धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on March 23, 2013 at 9:03am

जिद पे अड़ जाए तो दुनिया भी पड़े कम, वरना

दिल तो बच्चा है खिलौनों से बहल जाता है.............वाह! बहुत खूब!

दिली दाद कुबुलें आदरणीय धर्मेद्र जी, सादर.

Comment by ram shiromani pathak on March 22, 2013 at 2:27pm

..आदरणीय  धर्मेन्द्र सिंह जी, बहुत बढ़िया ..

जिद पे अड़ जाए तो दुनिया भी पड़े कम, वरना

दिल तो बच्चा है खिलौनों से बहल जाता है       वाह वाह   ....

Comment by राजेश 'मृदु' on March 22, 2013 at 2:08pm

अच्‍छी रचना के लिए हार्दिक बधाई कबूल करें, सादर

Comment by Amod Kumar Srivastava on March 22, 2013 at 10:51am

भिनभिनाने से तेरे कौन बदल जाता है

अब तो मक्खी यहाँ कोई भी निगल जाता है  ....आदरणीय  धर्मेन्द्र सिंह जी, बहुत बढ़िया ..... वाह वाह   ....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 22, 2013 at 9:36am

आदरणीय धर्मेन्द्र सिंह जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है

यूँ लगातार निगाहों से तू लेज़र न चला

आग ज्यादा हो तो पत्थर भी पिघल जाता है ...... निगाहों से लेज़र हहाहाहा 

और गाल का लाल अखबार में बदलजाना ...क्या कहने 

हार्दिक दाद क़ुबूल करें।

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