हम सहिष्णु हैं भोले भाले मूंछें ताने फिरते
अच्छे भले बोल मन काले हम को लूटा करते
भाई मेरे बड़े बहुत हैं खून पसीने वाले
अत्याचार सहे हम पैदा बुझे बुझे दिल वाले
कुछ प्रकाश की खातिर जग के अपनी कुटी जलाई
चिथड़ों में थी छिपी आबरू वस्त्र लूट गए भाई
माँ रोती है फटती छाती जमीं गयी घर सारा
घर आंगन था भरा हुआ -कल- कोई नहीं सहारा
बिना जहर कुछ सांप थे घर में देखे भागे जाते
बड़े विषैले इन्ही बिलों अब सीमा पार से आते
ज्वालामुखी दहकता दिल में मारूं काटूं खाऊँ
छोड़ अहिंसा बनूँ उग्र क्या ?? आतंकी कहलाऊँ ?
गुंडागर्दी दहशत दल बल ले जो आगे बढ़ता
बड़े निठल्ले पीछे चलते फिर आतंक पसरता
ना आतंक दबे भोलों से - गुंडों से तो और बढे
कौन 'राह' पकडूँ मै पागल घुट घुट पल पल खून जले
बन अभिमन्यु जोश भरे रण कुछ पल ही तो कूद सकूं
धर्म युद्ध अब कहाँ रहा है ?? ‘वीर’ बहुत- ना जीत सकूं
मटमैली इस माटी का भी रंग बदलता रहा सदा
कभी ओढती चूनर धानी कभी केसरिया रंग चढ़ा
मै हिम हिमगिरि गंधक अन्दर 'अंतर' देखो खौल रहा
फूट पड़े जो- सागर भी तब -अंगारा बन उफन पड़ा
समय की पैनी धार वार कर सब को धूल मिला देती
कोई 'मुकद्दर' ना 'जग' जीता अंत यहीं दिखला देती
तब बच्चा था अब अधेड़ हूँ कल मै बूढा हूँगा
माँ अब भी अंगुली पकडे हे ! बुरी राह ना चुनना
कर्म धर्म आस्था पूजा ले परम -आत्मा जाने
प्रतिदिन घुट-घुट लुट-लुट भी माँ ‘अच्छाई’ को ‘अच्छा’ माने
भोला भाला मै अबोध बन टुकुर टुकुर ताका करता
खुले आसमाँ तले 'ख़ुशी' को शान्ति जपे ढूँढा करता
मै आतंकी बनूँ अगर ‘माँ ‘ खुद "फंदा" ले आएगी
पथरायी आँखे पत्थर दिल ले निज हाथों पहनाएगी ।
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर' ५
प्रतापगढ़ उ प्र
Comment
सुन्दर अभिव्यक्ति
भारत माता पालती, सच्चे धर्म सपूत |
दुष्टों की खातिर रखे, फंदे भी मजबूत |
फंदे भी मजबूत, मगर वह चच्चा चाची |
चांय-चांय छुछुवाय, घूमती नाची नाची |
प्रावधान का लाभ, यहाँ आतंकी पाता |
सत्ता यह कमजोर, करे क्या भारत माता ||
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