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भाई विंध्येश्वरी जी, चौपाई छंद पर आपका प्रयास बहुत ही आश्वस्तकारी है. आपने कल के यमक स्वरूप में बहुत कुछ साझा किया है. समय, उपकरण, संतोष या चैन, चतुरायी क्या कुछ नहीं बाँध लिया है आपने इस कल में ! वाह-वाह !
कल को कलम बदल देगी अब।
कल कर आज दिखा देगी अब॥
कलमकार वह कर सकता है।
जो करने से कल डरता है॥
बहोत ही बढ़िया कहा आपने आदरणीय विनय जी ........ बहोत खूब
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