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आत्म साक्षात्कार

       इस सृष्टि के प्रारम्भ से ही मानव ह्रदय में अपने अस्तित्व को लेकर अनेक प्रश्न उठते रहे हैं। 'मैं कौन हूँ' 'इस धरती पर मेरे आगमन का क्या औचित्य है' ' वह कौन है जो इस सम्पूर्ण सृष्टि को नियंत्रित करता है' इन सभी प्रश्नों ने वर्षों से मानव ह्रदय को आंदोलित कर रखा है। मनुष्य की सम्पूर्ण वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक प्रगति का कारण यही प्रश्न रहे हैं।

            जब भी इन प्रश्नों ने किसी व्यक्ति के मन को माथा है तब वह इन प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने के लिए व्याकुल हो उठा है। उसकी इस व्याकुलता ने उसे आध्यात्म के दुष्कर मार्ग का पथिक बना दिया है। अपने प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए वह सिद्धार्थ की भांति अपना सर्वस्व त्याग कर इस दुर्गम मार्ग पर चल पड़ा है। यह सिद्धार्थ जब अपने प्रश्नों के वन में भटकते भटकते थक जाता है तब शांत होकर एक स्थान पर बैठ जाता है। अपने आप को बाहरी दुनिया से पृथक कर वह अंतर्मुखी हो जाता है। गहन साधना के बाद वह उन प्रश्नों का उत्तर अपने भीतर पाता है जिन्हें पाने के लिए वह बाहर भटक रहा था। हर सिद्धार्थ को गौतम बनाने के लिए इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।

भगवद गीता में आत्म साक्षात्कार के दो मार्ग बताये गए हैं -

  • ज्ञान मार्ग 
  • कर्म मार्ग

ज्ञान का मार्ग बहुत कठिन है। यह मार्ग उनके लिए उचित है जो जो पूर्ण ज्ञानी हैं। एक नौसीखिए के लिए

यह डगर फिसलन से भरी है। अतः आत्म अनुभूति की चाह रखने वाले के लिए निष्काम कर्म का मार्ग ही श्रेष्ठ है।

व्यक्ति चाहे किसी भी मार्ग का चुनाव करे किन्तु एक दृढ प्रतिज्ञ व्यक्ति ही आध्यात्म की राह पर आगे बढ़ सकता है। आत्म विश्वास से भरा हुआ व्यक्ति ही इस यात्रा की कठिनाईयों का सामना कर सकता है। पलायनवादी व्यक्ति जो आत्म अनुभूति की आड़ में अपने कर्तव्यों से भागता है कभी भी सफलता नहीं पाता है। आत्म साक्षात्कार का मार्ग दुर्बल ह्रदय वाले व्यक्तियों के लिए नहीं है।

          प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य आत्म अनुभूति है। जैसे नदियाँ सागर की ओर बढ़ती हैं हम भी आत्म अनुभूति के पथ पर तब तक बढ़ते रहते हैं जब तक अपनी मंजिल न पा लें। इस प्रक्रिया में कई जन्म लग जाते हैं।

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 21, 2016 at 8:41pm
ज्ञान मार्ग और कर्म मार्ग से आत्म अनुभूति का पाठ पढ़ाता बढ़िया आलेख। सादर हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी जी।
Comment by ram shiromani pathak on March 15, 2013 at 11:00am

आध्यात्मिक चिंतन से जुड़े इस लेख के लिए हार्दिक बधाई भाई श्री आशीष कुमार त्रिवेदी जी  !!!!!!!!!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 12, 2013 at 4:19pm

आत्म साक्षात्कार का मार्ग दुर्बल ह्रदय वाले व्यक्तियों के लिए नहीं है। - सही कहा है आपने, स्वामी विवेकनन्द

के गुरुश्रद्ध्येय राम कृष्ण परम हंस ने भी यही कहा था | अगर प्रबल श्रद्धा और आत्म हो तो बालक ध्रुव की तरह

ज्ञान अर्जितकिया जा सकता है,जो शैक्षणिक विधा से भी संभव नहीं | तब भौतिक संसार कर्म का मार्ग श्रेयस्कर और आवश्यक है |

आध्यात्मिक चिंतन से जुड़े इस लेख के लिए हार्दिक बधाई भाई श्री आशीष कुमार त्रिवेदी जी  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 11, 2013 at 11:14pm

निवेदन है कि इस तरह के पोस्ट के लिए आध्यात्मिक चिंतन समूह है. इसे अविलम्ब आध्यात्मिक चिंतन समूह में डाल दिया जाय.

सादर

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