For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये बहारें ये फिजा सौगात तेरी आ गयी है

चांद ने घूंघट उतारा बात तेरी आ गयी है

 

याद आई, तू न आया, क्या गिला करना किसी से

रात भर आंसू बहाएं बात तेरी आ गयी है

 

इन घटाओं ने न जाने कौन सा जादू किया जो

शाम ढलती ही रही इस्बात तेरी आ गयी है

 

अब सहारा ढूंढते हैं तू नहीं जो साथ मेरे

तू कहीं होता यहीं क्यूं बात तेरी आ गयी है

 

रात की तन्हाइयां भी सालती हैं अब मुझे यूं

बात कुछ होती नहीं पर बात तेरी आ गयी है

                                       - बृजेश नीरज

Views: 488

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 9:33pm

वंदना जी आपकी सराहना योग्य गज़ल लिख पाया हूं तो यह ओ बी ओ की देन है और आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी की डांट का असर है।

Comment by Vindu Babu on March 13, 2013 at 9:25pm
आदरणीय सर जी...
भावनाओं को इतने लयबद्ध और सुन्दर ढंग से सजाने के लिए आपको बधाई।
Comment by बृजेश नीरज on March 12, 2013 at 7:46pm

आदरणीय राजेश जी तथा राम शिरोमणि जी, आपका आभार!

Comment by राजेश 'मृदु' on March 12, 2013 at 5:32pm

सुंदर प्रस्‍तुति ।

Comment by ram shiromani pathak on March 12, 2013 at 11:12am

आदरणीय बृजेश जी:

 

रात की तन्हाइयां भी सालती हैं अब मुझे यूं

बात कुछ होती नहीं पर बात तेरी आ गयी है!

वाह !!!
बहुत खूब 
अच्छी ग़ज़ल हुई है

Comment by बृजेश नीरज on March 12, 2013 at 5:42am

आदरणीय निकोर जी,
आपका आभार! यहां आप लोगों से बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। दोहा, चैपाई और अब गजल। आप सबका मार्गदर्शन यूं ही प्राप्त होता रहे इस प्रार्थना के साथ।
सादर!

Comment by बृजेश नीरज on March 12, 2013 at 5:37am

आदरणीय वीनस जी,
यह गजल आपकी कक्षा से ही सम्भव हुई। आपका आभार!
सादर!

Comment by बृजेश नीरज on March 12, 2013 at 5:35am

आदरणीय सौरभ जी,
आपका आभार! यह आपके मार्गदर्शन से ही सम्भव हो सका। बहुत बहुत धन्यवाद!
सादर!

Comment by vijay nikore on March 12, 2013 at 4:25am

आदरणीय बृजेश जी:

 

अब सहारा ढूंढते हैं तू नहीं जो साथ मेरे

तू कहीं होता यहीं क्यूं बात तेरी आ गयी है

 

वाह, वाह, वाह!

बधाई।

 

विजय निकोर

Comment by वीनस केसरी on March 12, 2013 at 2:05am

वाह !!!
बहुत खूब
अच्छी ग़ज़ल हुई है

मतला और आख़री शेअर के लिए ढेरो ढेर दाद क़ुबूल फरमाएँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
7 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service