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माथे पर सलवटें;

 

आसमान पर जैसे

बादल का टुकड़ा थम गया हो;

समुद्र में

लहरें चलते रूक गयीं हों,

 

कोई ख्याल आकर अटक गया।

 

धकियाने की कोशिश बेकार,

सिर झटकने से भी

निशान नहीं जाते।

 

सावन के बादलों की तरह

घुमड़कर अटक जाता है

वहीं

उसी जगह

उसी बिन्दु पर।

 

काफी वजनी है;

सिर भारी हो चला

आंखें थक गईं,

पलकें बोझल।

 

सहा नहीं जाता

इस विचार का वजन।

 

आदत नहीं रही

इतना बोझ उठाने की;

अब तो घर का राशन भी

भार में इतना नहीं होता कि

आदत बनी रहे।

 

बहुत देर तक अटका रहा;

वह कोई तनख्वाह तो नहीं

झट खतम हो जाए।

 

अभी भी अटका है वहीं

सिर को भारी करता।

बहुत देर से कुछ नहीं सोचा।

 

सोचते हैं भी कहां

सोचते तो क्यों अटकता।

 

इस न सोचने,

न बोलने के कारण ही

अटक गयी है जिंदगी।

 

तालाब में फेंकी गई पालीथीन की तरह

तैर रहा है विचार

दिमाग में

सोच की अवरूद्ध धारा में मंडराता।

 

अब मजबूर हूं सोचने को

कैसे बहे धारा अविरल

फिर न अटके

सिर बोझिल करने वाला

कोई विचार।

     - बृजेश नीरज

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Comment

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Comment by बृजेश नीरज on March 16, 2013 at 7:40am

आदरणीय सौरभ जी, आपके मार्गदर्शन के लिए आभार! आपके निर्देशों का आगे ध्यान रखूंगा।
सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 7:16am

कई बिम्ब एकदम से छूते हैं.  कई इंगितों का प्रभाव आश्वस्त करता है कि आगे आपकी पंक्तियाँ और कसती जायेंगी. आपके प्रस्तुत प्रयास के लिए बधाई, बृजेश भाई.

वैचारिक कविताओं को अधिक न बोलने दें, भाव छिछले होने लगते हैं.  वस्तुतः ऐसी कविताओं का पाठक गहरे डूब कर पंक्तियों के साथ चलना चाहता है नकि अपेक्षा करता है कि पंक्तियाँ उसकी उँगली थामे राह बताती चलें.

सधन्यवाद

Comment by बृजेश नीरज on March 14, 2013 at 5:58pm

बहन वेदिका जी आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 14, 2013 at 5:57pm

भाई सतवीर जी आपका आभार!

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 14, 2013 at 6:46am
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति आ॰ बृजेश कुमार नीरज जी। बधाई स्वीकारें।
Comment by वेदिका on March 14, 2013 at 1:57am

सुन्दर और दिमाग को चोट करती हुयी अभिव्यक्ति!
आदरणीय बृजेश कुमार नीरज जी! हार्दिक शुभकामनाएं

बहुत देर तक अटका रहा;

वह कोई तनख्वाह तो नहीं

झट खतम हो जाए।

वाह!

 

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 9:35pm

राम शिरोमणि भाई आपका आभार!

Comment by ram shiromani pathak on March 13, 2013 at 9:28pm

आदरणीय बृजेश जी:!!!!!!!!यथार्थ दर्शाती हुई लयबद्ध प्रभावशाली रचना के लिए आपको सादर बधाई!

 

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 7:09pm

आदरणीय वन्दना जी आपका आभार!

Comment by Vindu Babu on March 13, 2013 at 5:54pm
यथार्थ दर्शाती हुई लयबद्ध प्रभावशाली रचना के लिए आपको सादर बधाई!
क्या बात कही है आपने वास्तव मे कभी कभी अटका हुआ विचार मन को इतना बोझिल कर देता है कि बाकी कार्य/सोंच ही अवरुद्ध हो जाते हैं।
बहुत सुन्दर!
सादर

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