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नारियों के सम्मान में,मिल अभियान करें,
लाज आज देवियों का,देश में बचाइये।
प्रेम की प्रतीक नारी,जीवन सरीक नारी,
माँ-बहन रूप नारी,सकल बचाइये॥
नारियां जो नहीं रहीं,नर भी बचेंगे नहीं,
प्रकृति और पुरुष,रूप को बचाइये।
दुर्गा-भवानी पूजे,घर में बहू को फूँकें,
बेटी-भ्रूण कोख मारें,सृष्टि को बचाइये॥

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 7:25pm

तो इस तरह से लिखने को अबतक क्यों छुपा रखा था ?  ..  :-))))

हा हा हा हा.. .

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 16, 2013 at 6:35pm
आदरणीय गुरुदेव! क्या उपर्युक्त छंद इस प्रकार से भी किया जा सकता है?

प्रेम की प्रतीक नारी, जीवन संगीत नारी,
भगिनी-माँ रूप नारी, इनको बचाइये।
दुर्गा नवरात्र पूजे, घर में बहू को फूँके,
कन्या-भ्रूण गर्भ मारें, सृष्टि को बचाइये॥
नारियां जो नहीं रहीं, नर भी बचेंगे कहाँ?
प्रकृति स्वरूपा नारी, रूप को बचाइये।
साझा अभियान चले, पापियों को दंड मिले,
लाज आज नारियों की, देश में बचाइये॥

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 12:27am

विंध्येश्वरी भाई.. अब सेआपको विनय कहा करूँगा .. . यह आसानी से ाइप हो जाता है.. :-))

इस मनहरण घनाक्षरी को जल्दबाज़ी में गढ़ा और पोस्ट किया गया लगता है. कथ्य पर तो बाद में चर्चा करेंगे, पहले बुनावत पर ही बातेम् की जाये. आप अपनी प्रस्तुति निम्नलिखित रूप में देखें. मैने शब्द-संयोजन कर इसे साधने का प्रयास किया है -

मान बढ़े नारियों की, मिल अभियान करें,
लाज आज देवियों का, देश में बचाइये।
प्रेम की प्रतीक नारी, जीवन सरीक नारी,
बहन है, माँ है, नारी, सकल बचाइये॥
नारियां जो नहीं रहीं, नर क्या बचेंगे कहीं
शक्ति के आधार और रूप को बचाइये।
मन्दिरों में देवी पूजें, घर में देवी को फूँकें,
मारे कोख ही में बेटी, सृष्टि को बचाइये॥

दुर्गा-भवानी पूजे,घर में बहू को फूँकें .. आपकी यह पंक्ति तो चरणानुसार ८,८  के वर्ण पर भी नहीं है...

विश्वास है, मैं स्पष्ट ह पाया.

शुभ-शुभ

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2013 at 8:00pm
घनाक्षरी की सराहना के लिये आभारी हूँ पाठक जी!
Comment by ram shiromani pathak on March 12, 2013 at 5:49pm

दुर्गा-भवानी पूजे,घर में बहू को फूँकें,
बेटी-भ्रूण कोख मारें,सृष्टि को बचाइये॥

बहोत ही बढ़िया कहा आपने आदरणीय त्रिपाठी जी .....सादर

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