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दुनिया है रंगों का मेला (चौपाई गीत)

आदरणीय गुरुजनवृंद सादर नमन!यथा सम्भव प्रयास के बाद में ओ.बी.ओ महोत्सव में मैं अपनी उपस्थिति नहीं हो सका,जिसका मुझे हार्दिक कष्ट है।बंगलौर से एक सेमिनार के बाद अभी घर पहुँच रहा हूँ।हालांकि अब तो आयोजन में शामिल नहीं हो सकता किन्तु उसी पृष्टभूमि में एक चौपाई गीत प्रस्तुत कर रहा हूं-
*****************************
दुनिया है रंगों का मेला।
कितना उजला कितना मैला॥

जीवन ने बहु रंग दिखाया।
बचपन अरुण रंग मन भाया॥
यौवन का वह चटकीलापन।
अल्हड़ मस्ती अलबेलापन॥
धूमिल धूसर रंग बुढ़ापा।
बहुविधि चिंता त्रिविधि तापा॥
रंगरेज रंगता अलबेला।
कितना उजला..............॥

धनवानों का रंग चटकीला।
निर्धन का रंग मद्धम गीला॥
मंहगाई का रंग अनल है।
त्रस्त-पस्त सब प्रजा विकल है॥
हत्या घूस लूट घोटाला।
बलात्कार का मुँह रंग काला॥
कल के भारत का रंग धुधला।
कितना उजला.............॥

यह जग रंगमंच अति सुन्दर।
माया भ्रमित सकल सचराचर॥
एक रंग नायक खलनायक।
स्वामी स्वामिनि सेवक पायक॥
बहुविधि नित नव अभिनय करते।
हँसते - रोते, जनते - मरते॥
अजब - गजब रंगों का खेला।
कितन उजला.............॥

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2013 at 8:12pm
भाई रामशिरोमणि जी!चौपाई गीत की सराहना हेतु हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2013 at 8:12pm
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी! चौपाई गीत की सराहना हेतु हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2013 at 8:11pm
आदरणीय केवल प्रसाद जी रचना की सराहना हेतु हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2013 at 8:09pm
आदरणीय विजय निकोर जी!आप सब गुरुजनों की कृपा से ही यह छंद लिखा गया है,अत: आप द्वारा की गयी सराहना आशीवार्द स्वरूप है।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2013 at 8:07pm
पूज्य गुरुदेव श्री सौरभ जी, सादर नमन! आपको चौपाई गीत पसंद आया रचनाकर्म सार्थक हुआ।
Comment by ram shiromani pathak on March 12, 2013 at 5:57pm

 बेहद सुन्दर रचना मन को छू गई | हार्दिक बधाई 

आदरणीय बिन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी ............

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 12, 2013 at 4:06pm

लगता है महोत्सव की समाप्ति के बाद फिर रंगों का मेला लग गया है | अब जों रचनाए पोस्ट हो रही है, वे अगर महोत्सव में पोस्ट 

होती तो आदरणीय बागी जी को गत वर्ष के महोत्सव की याद नहीं आती | बेहद सुन्दर रचना मन को छू गई | हार्दिक बधाई 

श्री बिन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 12, 2013 at 6:03am

विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय जी !  सादर प्रणाम!  दुनिया है रंगों का मेला, कितना उजला कितना मैला.......वर्तमान परिवेश को सार्थक बनाती  है!  अच्छा लगा बधाई हो!

Comment by vijay nikore on March 12, 2013 at 4:35am

आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी:

 

यह जग रंगमंच अति सुन्दर।
माया भ्रमित सकल सचराचर॥
एक रंग नायक खलनायक।
स्वामी स्वामिनि सेवक पायक॥

 

बहुत सुन्दर।

बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 11, 2013 at 11:49pm

भाई विंध्येश्वरीजी, आपकी इस रचना का आयोजन का भाग न बन पाना हमसब के लिए कष्टप्रद है. नई दृष्टि से रंग को देखना बहुत सुहाया है.

आखिरी दोनों बन्द तो कमाल-कमाल-कमाल !!!

बहुत-बहुत बधाई.. .

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