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बेहद सुन्दर रचना मन को छू गई | हार्दिक बधाई
आदरणीय बिन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी ............
लगता है महोत्सव की समाप्ति के बाद फिर रंगों का मेला लग गया है | अब जों रचनाए पोस्ट हो रही है, वे अगर महोत्सव में पोस्ट
होती तो आदरणीय बागी जी को गत वर्ष के महोत्सव की याद नहीं आती | बेहद सुन्दर रचना मन को छू गई | हार्दिक बधाई
श्री बिन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी
विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय जी ! सादर प्रणाम! दुनिया है रंगों का मेला, कितना उजला कितना मैला.......वर्तमान परिवेश को सार्थक बनाती है! अच्छा लगा बधाई हो!
आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी:
यह जग रंगमंच अति सुन्दर।
माया भ्रमित सकल सचराचर॥
एक रंग नायक खलनायक।
स्वामी स्वामिनि सेवक पायक॥
बहुत सुन्दर।
बधाई।
सादर,
विजय निकोर
भाई विंध्येश्वरीजी, आपकी इस रचना का आयोजन का भाग न बन पाना हमसब के लिए कष्टप्रद है. नई दृष्टि से रंग को देखना बहुत सुहाया है.
आखिरी दोनों बन्द तो कमाल-कमाल-कमाल !!!
बहुत-बहुत बधाई.. .
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