For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1

ऋतु बसंत

उत्सव व उल्लास

मन अनंत।

 

2

अबीर मला

क्लेष की आहुति हो

गुलाल उड़ा।

 

3

कहां कोयल

बुलबुल खोयी है

फीके से गीत।

 

4

लाल किरन

सूरज अब जागा

नई सुबह।

 

5

शिव अरूप

पार्वती का श्रंगार

शुभ विवाह।

        - बृजेश नीरज

 

 

 

Views: 429

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 24, 2013 at 7:47pm

वंदना जी आपका आभार!

Comment by Vindu Babu on March 23, 2013 at 11:21pm
हायकू के रूप मे सुन्दर भाव रचना आदरणी सर जी।
सादर बधाई आपको।
Comment by बृजेश नीरज on March 22, 2013 at 6:40pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 22, 2013 at 6:39pm

आदरणीया प्राची बहन, आपका बहुत आभार! आपका सुझाव उपयुक्त है।

आप जैसे लोगों से यहां बहुत कुछ सीखने को मिलता है इसलिए मैं उसे आदेश की तरह ही लेता हूं क्योंकि आदेश में ‘न मानने’ की गुंजाइश नहीं रहती। यदि ऐसा नहीं करता तो आज जो कुछ सुधार मेरे लेखन में हो पाया है वह न हो पाता।

आभार!

Comment by ram shiromani pathak on March 22, 2013 at 2:31pm

आदरणीय  श्री बृजेश कुमार सिहं जी आपकी हाइकू बहुत  प्यारी और सुन्दर लगी,

अबीर मला

क्लेष की आहुति हो

गुलाल उड़ा।

 

3

कहां कोयल

बुलबुल खोयी है

फीके से गीत।

 

बहुत-बहुत बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 22, 2013 at 2:14pm

आ. बृजेश जी 

उक्त हायकू में आप 'मन अनंत' की जगह रंग अनंत भी कर सकते हैं, यदि आपको रुचिकर लगे तो..

मेरे कहे को आदेश की तरह ना लें आदरणीय, यहाँ हम सब मिलकर ही सीखते हैं.

सादर.

Comment by बृजेश नीरज on March 22, 2013 at 11:24am

आदरणीया प्राची बहन,
आपने सत्य कहा है। ध्यान न देने की वजह से यह त्रुटि हो गयी। आगे से आपके आदेश का पालन सुनिश्चित करूंगा।
सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 22, 2013 at 10:44am

 सभी हायकू बहुत बढ़िया है बृजेश जी
बहुत बहुत बधाई
पर पहले हायकू में तीनों पंक्तिया पूर्ण व स्वतंत्र नहीं हैं

ऋतु बसंत

उत्सव व उल्लास

रहे अनंत ....... इस  पंक्ति का पूर्ण अर्थ  नहीं है , इसलिए यह दूसरी पंक्ति पर निर्भर लग रही है 

इससे बचना चाहिए

सादर शुभ कामनाएं

Comment by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 11:47pm

केवल भाई आपका बहुत बहुत धन्यवाद!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 21, 2013 at 9:22pm

आदरणीय  श्री बृजेश कुमार सिहं जी आपकी हाइकू बहुत  प्यारी और सुन्दर लगी, बहुत-बहुत बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
19 hours ago
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service