1
ऋतु बसंत
उत्सव व उल्लास
मन अनंत।
2
अबीर मला
क्लेष की आहुति हो
गुलाल उड़ा।
3
कहां कोयल
बुलबुल खोयी है
फीके से गीत।
4
लाल किरन
सूरज अब जागा
नई सुबह।
5
शिव अरूप
पार्वती का श्रंगार
शुभ विवाह।
- बृजेश नीरज
Comment
वंदना जी आपका आभार!
आदरणीय राम शिरोमणि जी आपका आभार!
आदरणीया प्राची बहन, आपका बहुत आभार! आपका सुझाव उपयुक्त है।
आप जैसे लोगों से यहां बहुत कुछ सीखने को मिलता है इसलिए मैं उसे आदेश की तरह ही लेता हूं क्योंकि आदेश में ‘न मानने’ की गुंजाइश नहीं रहती। यदि ऐसा नहीं करता तो आज जो कुछ सुधार मेरे लेखन में हो पाया है वह न हो पाता।
आभार!
आदरणीय श्री बृजेश कुमार सिहं जी आपकी हाइकू बहुत प्यारी और सुन्दर लगी,
अबीर मला
क्लेष की आहुति हो
गुलाल उड़ा।
3
कहां कोयल
बुलबुल खोयी है
फीके से गीत।
बहुत-बहुत बधाई।
आ. बृजेश जी
उक्त हायकू में आप 'मन अनंत' की जगह रंग अनंत भी कर सकते हैं, यदि आपको रुचिकर लगे तो..
मेरे कहे को आदेश की तरह ना लें आदरणीय, यहाँ हम सब मिलकर ही सीखते हैं.
सादर.
आदरणीया प्राची बहन,
आपने सत्य कहा है। ध्यान न देने की वजह से यह त्रुटि हो गयी। आगे से आपके आदेश का पालन सुनिश्चित करूंगा।
सादर!
सभी हायकू बहुत बढ़िया है बृजेश जी
बहुत बहुत बधाई
पर पहले हायकू में तीनों पंक्तिया पूर्ण व स्वतंत्र नहीं हैं
ऋतु बसंत
उत्सव व उल्लास
रहे अनंत ....... इस पंक्ति का पूर्ण अर्थ नहीं है , इसलिए यह दूसरी पंक्ति पर निर्भर लग रही है
इससे बचना चाहिए
सादर शुभ कामनाएं
केवल भाई आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
आदरणीय श्री बृजेश कुमार सिहं जी आपकी हाइकू बहुत प्यारी और सुन्दर लगी, बहुत-बहुत बधाई।
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