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ग़जल/ पिघल गया होगा

जब जिक्र मेरा हुआ होगा

वो कुछ पिघल तो गया होगा

 

जी भर तुझे देख ही लेता

ओझल कहीं हो गया होगा

 

अब सांस भर जी नहीं सकते

इस शहर में कुछ धुंआ होगा

 

दरिया यहां सूखने को है

पानी कहां बह गया होगा

 

इस आंख में हिज्र के आंसू

दिल में तूफां सा रहा होगा

 

बुनियाद हिलने लगी है जो

पत्थर खिसकने लगा होगा

                       - बृजेश नीरज

 

 

 

 

 

 

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Comment by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 6:16pm

आदरणीय राजेश भाई, आपका बहुत बहुत धन्यवाद!

Comment by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 6:16pm

आदरणीय पाठक जी, आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 6:16pm

योगी भाई आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 6:15pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपका बहुत बहुत आभार! आपको रचना पसन्द आयी मेरी लिखना सार्थक हुआ। होली की आपको भी बहुत बहुत शुभकामनाएं।

Comment by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 6:15pm

आदरणीय वीनस केसरी भाई, यह आपकी ही शिक्षा का परिणाम है। गुरू से प्रशंसा लिखना सार्थक करती है। आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 6:14pm

आदरणीय मोहन बेगोवाल जी,

आपका आभार!

 

Comment by राजेश 'मृदु' on March 21, 2013 at 4:49pm

सुंदर प्रस्‍तुति, आगे और पढ़ने की इच्‍छा जरूर है, सादर

Comment by ram shiromani pathak on March 21, 2013 at 11:07am

अब सांस भर जी नहीं सकते

इस शहर में कुछ धुंआ होगा

 

दरिया यहां सूखने को है

पानी कहां बह गया होगा!!!!!!!

आदरणीय ब्रिजेश जी वाह ! बहुत खूब

Comment by Yogi Saraswat on March 21, 2013 at 11:02am

दरिया यहां सूखने को है

पानी कहां बह गया होगा

 

इस आंख में हिज्र के आंसू

दिल में तूफां सा रहा होगा

वाह ! बहुत खूब


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Comment by rajesh kumari on March 21, 2013 at 9:21am

बुनियाद हिलने लगी है जो

पत्थर खिसकने लगा होगा-----चाहे तो एक पत्थर ही बुनियाद हिला दे बहुत सच्ची बड़ी बात वाह 

दरिया यहां सूखने को है

पानी कहां बह गया होगा-----पर्यावरण प्रदूषण निगल रहा है पानी सही कटाक्ष  वाह ब्रजेश नीरव जी  बहुत सुंदर लिखा है होली की शुभ शुभकामनाएं

 

 

             

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