For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये फिजाएं खोलती हैं राज गहरे कई

इस कली में बंद हैं नादान भौंरे कई

 

हम तो आशिक हैं हमारा क्या बहल जाएंगे

आपके दामन पे हैं ये दाग गहरे कई

 

देर तक खामोश सी रोती रही जिंदगी

छूटते हैं जो यहां पर थे सहारे कई

 

इस जहां की दौलतें बेकार होने लगीं

हाथ फैलाए खड़े उसके दुआरे कई

 

जुल्म कितने बढ़ गए आवाज होती नहीं

अब यहां रहने लगे गूंगे व बहरे कई

                      - बृजेश नीरज

 

Views: 347

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 16, 2013 at 9:23pm

आदरणीय सौरभ जी, यह आपके मार्गदर्शन का ही परिणाम है। कुछ सीखने के लिए एक अच्छे गुरू की आवश्यकता होती है। आपने मेरे लिए वह कमी पूरी कर दी है। आपका मार्गदर्शन यदि यूं ही प्राप्त होता रहा तो शायद आगे स्वयं के लेखन में कुछ और सुधार कर सकूं।
सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 9:00pm

शिल्प को बाँधे रखा है यह आश्वस्त करता है, बृजेश भाई.

कहन में भी कसावट आ रही है. ..

जुल्म कितने बढ़ गए आवाज होती नहीं
अब यहां रहने लगे गूंगे व बहरे कई  .. ..  बहुत खूब !

Comment by बृजेश नीरज on March 16, 2013 at 12:40pm

आदरणीय योगी जी आपका आभार!

Comment by Yogi Saraswat on March 16, 2013 at 11:30am

हम तो आशिक हैं हमारा क्या बहल जाएंगे

आपके दामन पे हैं ये दाग गहरे कई

 

देर तक खामोश सी रोती रही जिंदगी

छूटते हैं जो यहां पर थे सहारे कई

बहुत सुन्दर अश आर

Comment by बृजेश नीरज on March 15, 2013 at 8:12pm

आदरणीय स्वर्ण जी आपका आभार!

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 15, 2013 at 7:46pm

साहित्य समाज का आइना  है 

ग़ज़ल में कई अच्छे शेयर हैं

which i have liked, thanks 

 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service