क्या खूब उसने मुझको , पर्दा हटा के मारा
उम्मीद के अंचल मैं , उसने सुला के मारा
आयेगे कह गए वो ,मेरा इंतज़ार करना
उम्मीद के दामन मैं, ऐसे फुला के मार
बेमौत मर गया वह, ये दुनिया कह रही थी
इन्सनियत में उसने , सर को कटा के मारा
मेरा वजूद उसका हमशक्ल बन गया था
यादों मैं उसने मुझको , ऐसा सता के मारा
इक बेजुबान चिड़िया , जो चुग रही दाने
सय्याद ने उस फिर , चल से फसा के मर
अब ईद या दिवाली, कैसे मनायेगे हम
इन्सानिय को उसने इतना दबा के मरा
इस बेरहम समय की ऐसी है बेवफाई
इसको रुला के मारा , उसको हँसा के मारा
ऐ बन्दे मान ले तू अल्लाह की नसीहत
उसने जिसे भी मारा ,सब कुछ बता के मारा
खुर्शीद दिल जलाकर, फैला रहा उजाला
अपने ही आइने में , दिन को सटा के मारा
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