For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भावना अर्पण करूँ....नवगीत// डॉ० प्राची

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

 

गूँज लें सारी फिजाएँ

युगल मन मल्हार गाएँ

चंद्रिकामय बन चकोरी

प्रेम उद्घोषण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

 

मन-स्पंदन कर दूँ शब्दित

तोड़ कर हर बंध शापित

नेह पूरित निर्झरित उर

गान से तर्पण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

 

भाव झंकृत हृदय धड़कें

सुरमई सब स्वप्न थिरकें

सहज संवेदना स्वीकृत

सर्वदा हो प्रण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

 

उड़ चलूँ विस्तार लेकर

तर्कणों का सार लेकर

मरघटों की क्षुब्धता को

ज़िंदगी प्रति क्षण करूँ...

 

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

Views: 968

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 15, 2013 at 11:06am

रचना अपने भावों से आपके मन में स्थान पा सकी, रचना पर इस अनुमोदन के लिए आपकी आभारी हूँ आ० आशीष त्रिवेदी जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 15, 2013 at 11:02am

प्रस्तुत गीत को पसंद करने के लिए आभार आ० श्रीराम जी

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 10, 2013 at 11:33am

सुंदर प्रीत शब्दों की मोहताज नहीं इसकी अभिव्यक्ति भावना से होती है। भावनाएं ही इसे सबल बनाती हैं। बिना बोले भी महज एक इशारा ही इसे व्यक्त कर देता है।

अंतिम छंद दिल को छू गया

उड़ चलूँ विस्तार लेकर

तर्कणों का सार लेकर

मरघटों की क्षुब्धता को

ज़िंदगी प्रति क्षण करूँ...

प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...

Comment by श्रीराम on April 1, 2013 at 8:53pm

" सुंदर प्रस्तुति ... बहुत-बहुत बधाई"


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2013 at 8:50pm

आदरणीय अरुण शर्मा जी,

रचना को महसूस करके आपने अनुमोदित किया, इस लिए आपकी हृदय से आभारी हूँ... सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2013 at 8:49pm

आदरणीय बृजेश कुमार सिंह जी,

रचना के भावों की शुचिता नें आपके हृदय को स्पर्श किया, इस अनुमोदन हेतु आपकी आभारी हूँ. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2013 at 8:45pm

आदरणीय विजय निकोर जी 

रचना एक पाठक को भाव संतृप्त कर सके, तो ही रचना की सार्थकता है, इसे अनुमोदित करने हेतु मैं आपकी आभारी हूँ, सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2013 at 8:42pm

आदरणीय सौरभ जी,

रचना की भावदशा और समर्पण की शुभ भावना को आपने मान दिया है, इस हेतु आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ..

शब्द संयोजन को साधने का बहुत प्रयास किया था फिर भी दो जगह, अपने सीमित शब्द भण्डार के समक्ष हार गयी 

१. मन-स्पंदन कर दूँ शब्दित..... यहाँ गेयता कुछ बाधित लगी 

२.सहज संवेदना स्वीकृत/सर्वदा हो प्रण करूँ... कई बार हम जो हृदय में महसूस करते हैं, उसे ही पता नहीं क्यों हम स्वयं के समक्ष भी स्वीकार नहीं करते....इसी बात को कहना चाहा था , यदि निर्बाध गेयता रखते हुए, इसका कोई विकल्प दे सकें तो कृपा होगी..

आगे से शब्द संयोजन को साधने का और प्रयास रहेगा.

सादर आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2013 at 8:32pm

आदरणीय विजय मिश्र जी,

आपकी शुचि भावनाएं इस रचना को प्राप्त हुई, रचनाकर्म प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 1, 2013 at 8:28pm

आदरणीया कुंती मुखर्जी जी,

इस रचना में प्रेम की अभिव्यक्ति की गहनता को मान देने के लिए आपकी आभारी हूँ, सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
19 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service