For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घण्टियों की

खनखनाती खिलखिलाहट  

से गूँज उठी

हर पूजास्थली..

मन्नत की

लाल चूनर और रंगीन धागों के

ग्रंथिबंधन में आबद्ध हुए सारे स्तम्भ

और बरगद पीपल की हर शाख..

माँ के दर फैलाये झोली,

जोड़े कर, झुकाए सर,

नवदम्पत्ति मांग रहे हैं भिक्षा-

पुत्र रत्न की...

और हम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं !!!

****************************************

उड़ान भरने को व्याकुल

पर फड़फड़ाते घायल परिंदे सा बेबस

सहमा सिसका

संघर्षरत

अपने वजूद को तलाशता

शोषण दोषण मोषण से आक्रान्त

कुकृत्यों के कुहासों में

नित दफ़न होता

नारी अस्तित्व.....

क्या आज फिर महिला दिवस है ?

Views: 908

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 22, 2013 at 10:27pm

आदरणीया राजेश जी,

सभ्य समाज के उच्च वर्ग में भी महिलाओं के ह्रदय में व्याप्त इस औपचारिकता के खोखलेपन को देख मन क्रंदित था... सो मन की भावनाएं जस की तस लिख दीं थी...

इन भावों को आपका अनुमोदन प्राप्त हुआ.. इस हेतु हृदय से आभारी हूँ 

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 22, 2013 at 8:27pm

प्रिय प्राची जी आपकी ये उत्कृष्ट प्रस्तुति ना जाने इतने दिनों बाद दिखाई दी या कहिये कुछ दिनों से मैं ही इतनी व्य्स्त थी ओ बी ओ पर भी बहुत कम आना हुआ महिला दिवस परबहुत कुछ लिखा भी और आयोजनों  में हिस्से भी लिए पर जो बात मेरे मन में थी वो आपने बड़ी खूबसूरती से कलम बद्ध की जब तक हमारे व अन्य देशों में लोगों की मानसिकता जड़ से नहीं बदलेगी तब तक महिला दिवस हमारा मुँह ही चिढ़ायेगा हार्दिक बधाई इस सुंदर लेखन हेतु|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 13, 2013 at 7:00pm

रचना के यथार्थ तत्व को आपने पसंद किया इस हेतु धन्यवाद आदरणीय बृजेश जी 

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 2:40pm

आदरणीया प्राची बहन, आपकी दोनों रचनाओं के हर शब्द ने वास्तविकता को रेखांकित किया है। इस सुंदर रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 12, 2013 at 4:30pm

हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 12, 2013 at 4:29pm

यह यथार्थ सम्प्रेषण आपको उचित लगा आदरणीय ओम सप्रा जी...हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 12, 2013 at 4:27pm

आदरणीय सौरभ जी सादर आभार..

औरत के कभी ना ख़त्म होने वाले हौसले को मान देता है यह दिन "महिला दिवस". 

लेकिन जब तक समाज की गहन जड़ों तक जम चुकी संवेदनहीनता नहीं मिटती और उससे भी बढ़ कर जब  नारी ही सारी मानसिक बेड़ियाँ तोड़ स्वयं के और पूरे नारी समुदाय के अधिकारों के लिए नहीं सामने आतीं ......ये आन्दोलन रैली अभियान सब एक दिन के लिए ही चंद गलियों और मंचों पर गूँज कर ख़त्म हो जायेंगे, बिना कोई प्रगति किये....

बस यही दुखद लगता है.

//वह कहीं उस षडयंत्र का शिकार तो नहीं हो रही जिसके अंतर्गत निरंकुश बाज़ार और पुरुष संचालित मठों ने उसके गिर्द बिछा रखा है//

कितना सही कहा है आपने आदरणीय...स्वतंत्रता के मायने ही ना समझनेवाला नारी वर्ग का एक हिस्सा इस निरंकुश बाजार में स्वयं को एक उत्पाद की तरह पेश करता रहा है.. मूर्खता के अधीन हो ये कैसा खुलापन है? मुझे भी समझ नहीं आता..

सादर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 11, 2013 at 1:26pm

नित दफ़न होता

नारी अस्तित्व.............कैसा महिला दिवस ? सही कहा है, जब तक जाक्रुकता लाकर नारी अस्तित्व के प्रश्न चिन्ह

को नहीं मिटाया जाए, तब तक महिला दिवस मना इतिश्री कर लेना का कोई अर्थ नहीं है | इसके लिए महकवि

सुमित्रा नंदन पन्त की इस रचना पर ध्यान देकर सरकार समाज और व्यक्ति को प्रयास करना होगा -

''युग -युग की कारा से मुक्त करो नारी को,
           मुक्त करो हे मानव !जननी,सखी प्यारी को।''

हार्दिक बधाई इस सोच भी रचना के लिए डॉ प्राची जी 

Comment by om sapra on March 9, 2013 at 8:01pm

dr prachi ki mahila diwas par achhi kavitayen hain, badhai ho

dhanyavad, 

-om sapra, delh-9


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 9, 2013 at 1:59am

जिस यथार्थ को एक कवि-हृदय प्रतिदिन अपने आस-पास देखता है उस यथार्थ के विरुद्ध वह पहला प्रतिकार संपूर्ण नारी जाति को उपकृत करते दिन विशेष और लुभावने नारों को नकार कर करता है. यह कदम नारी समुदाय के उस साहस और मानसिक स्थायित्व से परिचित कराता है जो उसने तिल-तिल कर अर्जित किया है न कि इसे किसी उदार स्वयंभू से अहसानों का पुरस्कार सदृश लिया है.

आगे, नारी को स्वयं यह देखना होगा कि लोक-लुभावने नारों से प्रभावित हो कर वह कहीं उस षडयंत्र का शिकार तो नहीं हो रही जिसके अंतर्गत निरंकुश बाज़ार और पुरुष संचालित मठों ने उसके गिर्द बिछा रखा है. 

बहुत-बहुत बधाई आदरणीया इस सोच और अभिव्यक्ति पर.. .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service