मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
हृदयाश्रुओं का अर्घ्य दे
हर भाव को सामर्थ्य दे
विह्वल हृदय में गूँजती
मृदुनाद सी सुरधीत है....
मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
सूर्यास्त नें चूमा उदय
दे हस्त में, तुझको हृदय
चिर प्रज्ज्वला तेरी प्रभा
लौ दिव्य दिवसातीत है...
मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
कुंदन करे ऐसी अगन
यज्ञाग्नि में आहूत मन
अस्पृष्ट सी शुचिकर छुअन
सुगृहीत देहातीत है...
मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
दुर्नीति से दुर्भीत था
व्यक्तित्व जो परिवीत था
सब सींखचों को तोड़कर
वह आज व्योमातीत है...
मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
निर्भीत=निर्भय , अभिनीत=पूर्णता से सजाया हुआ , सुप्रणीत=सुन्दरता से रचित , सुगृहीत=जिसे ठीक प्रकार से ग्रहण किया गया हो , दुर्नीति=बुरा नीति विरुद्ध आचरण , दुर्भीत=बुरी तरह डरा हुआ , परिवीत=छिपाया हुआ , व्योमातीत=जिसके लिए आकाश भी छोटा हो.
Comment
यह गीत आपको पसंद आया और आपकी बधाई प्राप्त हुई, इस हेतु आपकी आभारी हूँ आ. कमल किशोर अग्रवाल जी
आदरणीया प्राची जी,
१६ फ़रवरी को पहली बार यह अनूठी रचना पढ़ी थी,
तदुपरांत इसको मैंने और मेरी जीवन साथी नीरा जी ने
कई बार हल्के-हल्के गुनगुनाया है, और आपके मनोहर
शब्द चयन और शब्दों की लय का रसास्वादन किया है।
आज आपको लिखने का अभिप्राय हमारा आपसे यह निवेदन है
कि यदि आप इस अनूठी रचना को स्वरित करके obo पर post
कर सकें तो और भी आनन्द आएगा ... जैसा कि आपके त्रिभंगी
छंद से आया था।
असमंजस में हूँ कि यह अप्रतिम रचना कैसे लिखी-लिखी गई!
सादर और सस्नेह,
विजय
प्राची जी नमस्कार! आपकी रचना पढी ! बहोत आनन्द आया ! आपको बहोत बहोत बधाई!
इस गीत के भाव आपको पसंद आये, भावों की सराहना व रचना के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार आ. मनोज जी
बहुत सुन्दर रचना प्राची जी | प्रेयसी का अपने प्रेमी की पदचाप भी संगीत लगती है , मधुर गीत लगती है ..... प्रेम भाव का सुन्दर अलंकरण |
रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार आदरणीया सीमा जी
बहुत पावन भाव और चिंतन के साथ लिखा हुया समर्पित गीत..... शब्दों में बहते हुए प्रांजल भावों की चन्दन गंध मन को महका गयी
दुर्नीति से दुर्भीत था
व्यक्तित्व जो परिवीत था
सब सींकचों को तोड़कर
वह आज व्योमातीत है...
बहुत बहुत बधाई इस गीत के लिए
आदरणीय नादिर खान जी, रचना निहित भावों को पसंद कर अनुमोदित करने के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर.
दुर्नीति से दुर्भीत था
व्यक्तित्व जो परिवीत था
सब सींकचों को तोड़कर
वह आज व्योमातीत है...
मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
आदरणीय प्राची जी सुंदर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी,
आपको यह गीत रुचा यह जान लेखन कर्म को प्रोत्साहन मिला है.. आपके अनुमोदन के लिए आपका सादर आभार.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online