For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

वैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर जावेंगे क्या

आप आ'ला हैं तो हमको हक़ हमारा दीजिये

आपके रहम-ओ-करम पे जीस्त जी पावेंगे क्या

कौन दे है नौकरी सिर्फ़ इल्म की अस्नाद पर

डिग्रियाँ लेते रहे यूँ ही तो फिर खावेंगे क्या

आप अपने दर्द की बुनियाद भी तो देखिये

दर्द में ये चारागर कोई कमी लावेंगे क्या

दश्त भी वहशत में आये हिज़्र है ऐसी ख़ला

मयकशी से इस ख़लिश में राहतें पावेंग क्या

ज़िंदगी प्यारी है ग़र तो राह से हट जाइए

ख़ुद से डरते हैं जुनूँ में जाने कर जावेंगे क्या

फिर वही दिल की तमन्ना फिर वही दिल की कशिश

हम उसी ग़लती को अबके फिर से दुहरावेंगे क्या

रास्ता रोके खड़ी हैं जाने कितनी आँधियाँ

आप तो झोका हैं अब झोके से घबरावेंगे क्या

हमको तो मालूम है सारी हक़ीक़त जीस्त की

इस बहार-ए-जीस्त पर हम लोग इतरावेंगे क्या

हमने ही जन्मा है इनको अपने ग़म की कोख से

ये हमारे शे'र अब हमको ही गुर्रावेंगे क्या

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 183

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 20, 2025 at 3:58pm

आदरणीय तमाम जी, आपने भी सर्वथा उचित बातें कीं। मैं अवश्य ही साहित्य को और अच्छे ढंग से पढ़ने का प्रयास करूँगा। अलबत्ता, आप आगे यह भी समझाएँ कि साहित्य में मुझे क्या-क्या पढ़ जाना चाहिए ताकि आपकी रचनाओं को समझने में मुझे सहजता हो। 

सादर

Comment by Aazi Tamaam on September 20, 2025 at 1:53pm

आदरणीय सौरभ जी सह सम्मान मैं यह कहना चाहूँगा की आपको साहित्य को और अच्छे से पढ़ने और समझने की आवश्यकता है मैं आपको हर बात पर विस्तार से नहीं समझा पाऊँगा इतना समय भी नहीं है और इसकी आवश्यकता भी नहीं बहुत से सुखनवरों का कलाम है आप स्वयम पढ़ लीजिये

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 30, 2025 at 11:29am

आदरणीय आजी तमाम भाई, आपकी प्रस्तुति पर आ कर पुरानी हिंदी से आवेंगे-जावेंगे वाले क्रिया-विषेषण से सामना हो रहा है, जिसे अब भाषा छोड़ चुकी है. इनके स्थान पर आएँगे-जाएँगे अब स्वीकार्य और मान्य हो चुके हैं.

 

फिर, इनका उपयोग दूसरी तरह से आज भी कहीं-कहीं हो जाता है. जब किसी कार्य को अन्य से करवाये जाने की संभावना बनती हो. इस लिहाज से मात्र एक शेर खरा उतरता है - 

रास्ता रोके खड़ी हैं जाने कितनी आँधियाँ

आप तो झोका हैं अब झोके से घबरावेंगे क्या ... अर्थात, अर्थ निकलता है, आप झोंके से (हमें) घबरवावेंगे क्या ? 

प्रयोग किया जाना या अपने हिसाब से नया करने का प्रयास अच्छा है. यह नवाचार का परिचायक भी है. लेकिन मान्य वैन्यासिक गठन के प्रति सचेत रहना अधिक उचित है. 

फिर, ज़िंदगी प्यारी है ग़र तो राह से हट जाईये ... आप यह ’जाईए’ कहाँ से ले आए ? कहाँ देखा है ? यदि कोई मान्य स्रोत हो तो हमें भी बताइएगा. हम भी जानकार होना चाहेंगे. 

बहरहाल, इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद .. 

 

Comment by Aazi Tamaam on August 22, 2025 at 6:01pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का

देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार का प्रयास किया है अगर सार्थक हो सका हो तो

कौन दे है नौकरी सिर्फ़ इल्म की अस्नाद पर

डिग्रियाँ लेते रहे यूँ ही तो फिर खावेंगे क्या

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 22, 2025 at 12:27pm

आ. आज़ी तमाम भाई,
अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ शेर और बेहतर हो सकते हैं.
जैसे 

इल्म का अब हाल ये है सोचते हैं नौजवाँ

डिग्रियाँ लेते रहे यूँ ही तो फिर खावेंगे क्या... यहाँ इल्म और डिग्री का खाने से सीधा सम्बन्ध नहीं है .. नौकरी न मिलने का रेफरेंस होना था.
दश्त भी वहशत में आ जाये है हिज़्र ऐसी ख़ला.. अलिफ़ वस्ल के बाद भी मिसरा अटकता सा लग रहा है 
दश्त भी वहशत में आए हिज़्र है ऐसी ख़ला
.
बस ऐसे ही 
सादर 
 

Comment by Aazi Tamaam on August 22, 2025 at 2:09am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्र इंसान जी इस ज़र्रा नवाज़ी का

Comment by Aazi Tamaam on August 22, 2025 at 2:08am

बहुत शुक्रिया आदरणीय भंडारी जी इस ज़र्रा नवाज़ी का

Comment by surender insan on August 22, 2025 at 12:49am

आदरणीय आज़ी भाई आदाब।

बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करे जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 21, 2025 at 8:42pm

आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service