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इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
वैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर जावेंगे क्या
आप आ'ला हैं तो हमको हक़ हमारा दीजिये
आपके रहम-ओ-करम पे जीस्त जी पावेंगे क्या
इल्म का अब हाल ये है सोचते हैं नौजवाँ
डिग्रियाँ लेते रहे यूँ ही तो फिर खावेंगे क्या
आप अपने दर्द की बुनियाद भी तो देखिये
दर्द में ये चारागर कोई कमी लावेंगे क्या
दश्त भी वहशत में आ जाये है हिज़्र ऐसी ख़ला
मयकशी से इस ख़लिश में राहतें पावेंग क्या
ज़िंदगी प्यारी है ग़र तो राह से हट जाईये
ख़ुद से डरते हैं जुनूँ में जाने कर जावेंगे क्या
फिर वही दिल की तमन्ना फिर वही दिल की कशिश
हम उसी ग़लती को अबके फिर से दुहरावेंगे क्या
रास्ता रोके खड़ी हैं जाने कितनी आँधियाँ
आप तो झोका हैं अब झोके से घबरावेंगे क्या
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