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आज मैं श्री नीरज जी की कविता "आदि पुरुष" पढ़ रहा था तो आपके त्रिभंगी छंदों की याद आई।
चाहे उनकी और आपकी रचना-विधि अलग सही, पाठक के लिए आपके शब्द-गुन्थन में वही मिठास है
जो नीरज जी के शब्दों में है। उदाहरणार्थ उनकी निम्न पंक्तियाँ दे रहा हूँ ...
आश्रान्त उषा, आक्लान्त निशा, दिग्भ्रान्त दिशा
.............
पल-विपल, निमिष-क्षण, दिवस-मास, अब्दाब्द कल्प
.................
ध्वनि-वसना, स्वर-कर्णा, लय-वर्णा, गति-चरणा
आदरणीया सीमा जी, यह छंद रचना आपको पसंद आयी ये जान बहुत संतोष मिला है, आपका हार्दिक आभार.
सुन्दर भाव,सुन्दर शब्द और सुन्दर मन के संयोग से बना सुन्दर छंद ...बधाई प्राची
आदरणीय विजय निकोर जी,
आप जैसे प्रबुद्ध व अनुभवी वैचारिकता से से समृद्ध पाठक द्वारा रचना पर उत्साहवर्धक सराहना पाना, लेखन कर्मिता को संतुष्ट करता है. इस बहुमूल्य प्रोत्साहन के लिए आपकी ह्रदय से आभारी हूँ. सादर.
आदरणीया प्राची जी:
नमस्कार!
इन चार पंक्तिओं में ही आपने खज़ाना दे दिया है।
निशब्द हूँ, कैसे कहूँ शब्दों से मैं मन का उल्लास,
कि जैसे पढ़ कर इनको आ गई सुख-शाँति मेरे पास,
आपकी लेखनी को सदैव समान है मेरा प्रणाम,
प्रसन्न कर देती है किसी भी दिवस को पल में,
करवटें बदलते कटी हो चाहे किसी की सारी रात।
आपकी इन पंक्तियों को अभी गुनगुनाकर देखा
बिना किसी साज़ वह बन गईं सौम्य गीत मधुर,
पुनरावृत्त हुआ मन में मेरे, मेरा प्रांजल उल्लास!
प्राची जी, बहुत, बहुत सारी बधाई।
विजय निकोर
आ. संदीप जी रचना को आपकी सराहना व अनुमोदन मिला, इस हेतु आपका आभार
मुक्तकंठ से रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार आ. राजेश झा जी
बहुत खूब ये केवल प्रयास से बढ़कर है
इस सुन्दर उत्कृष्ट छंद सृजन हेतु बधाई और धन्यवाद आपका
छंद त्रिभंगी है बहुरंगी, आपकी सुंदर रचना देखकर मन तो कसमसाकर रह गया, कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी की लेखनी से निकले शब्द एवं उसके गठन को देखकर ईर्ष्या होने लगती है, आपकी रचना देखकर ऐसा ही कुछ मेरे साथ हो रहा है । अभिराम लेखनी को शत-शत नमन
आदरणीया आरती शर्मा जी,
आपको यह रचना पसंद आयी और इसे अनुमोदित कर आपनें लेखन कर्म को प्रोत्साहित किया इस हेतु आपकी ह्रदय से आभारी हूँ. सस्नेह !
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