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डूब जाने की तलब दिल में उभर आई है
उसकी आँखों में अजब झील सी गहरे है

काश उसे भी मेरी हालत का पता हो जाता
रात है और गमे हिज्र की पुरवाई है

चाँद भी डूब गया बुझ गए तारे भी तमाम
मेरी आँखों में मगर नींद नहीं आई है

गम की तौहीन है इजहारे गमे दिल करना
और चुप रहने में शायद तेरी रुसवाई है

तेरी यादों ने दिया बढ़के सहारा ए दोस्त
जबकि कश्ती मेरी तूफ़ान से टकराई है

गमे जाना गमे दुनिया गमे हस्ती गमे दिल
ज़िन्दगी कितने मराहिल से गुज़र आई है

मुस्कुरा के जो हर एक दर्द सहा है मैंने
ए गमे दोस्त तेरी हौसला अफजाई है

इन चेरागों पे है एहसान हमारा "अलीम"
हमने खून दे के यह रौशनी फैलाई है

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Comment by विवेक मिश्र on May 10, 2010 at 10:58am
Good Thoughts..
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 9, 2010 at 5:02pm
bahut badhiya rachna hai ye aleem jee..........
डूब जाने की तलब दिल में उभर आई है
उसकी आँखों में अजब झील सी गहरे है
bahut accha likh rahe hain...keep it up......

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 9, 2010 at 3:50pm
मुस्कुरा के जो हर एक दर्द सहा है मैंने
ए गमे दोस्त तेरी हौसला अफजाई है

अलीम जी, ज्योही आपका ब्लॉग पोस्ट हुआ मै latest activity के colum मे देखता हू झपट कर ब्लॉग पर क्लिक करता हू की कोई अच्छी ग़ज़ल जरूर आया होगा, और यकीं मानिये अभी तक मुझे निराशा नहीं हुई है, हर बार शानदार और खुबसूरत ग़ज़ल मिला है पढने को, ये भी ग़ज़ल काफी अच्छी बनी है,

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