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(1)

विधि ने सुंदर गीत रचा,
अलि कुल स्वर सा यह गुंजन –
विश्व चराचर,
अविरत निर्झर,
श्वासों का यह स्पंदन.
कितना विस्मय,
कितना मधुमय,
कितना अनुपम,
मानव जीवन !
(2)
नक्षत्र खचित अम्बर में
किसके, उज्ज्वल स्नेह का प्रकाश ?
किसके इंगित पर मुस्काते हैं
यह धरती और यह आकाश ?
किसके सौरभ से
सुरभित यह मन,
अश्रु शिशिर,
नहीं क्रंदन !
किसके कर में क्रीड़ा करते
जीवन – मरण,
मरण – जीवन -
उसको अर्पित हो तन मन,
उसको अर्पित हो जीवन.
(3)
प्रांगण में हौले हौले
जब ऐसी मधुवात बहे,
जब ऐसे पुष्पों का हार
अपनी कोई बात कहे,
जब पराग पुलकित हो जाये –
प्रमोदित हो उठे चमन,
पीड़ा भी आनंद बने –
तब होगा कोई परिवर्तन
विकसित होगा
अवसादित मन
जीवन यौवन
हर कण हर क्षण.
(4)
जन्मदिन,
यह जन्मदिन है
स्मृतियों का पीला पतझर,
नए वसंत का आश्वासन औ’
कोमल पत्रों का मर्मर.
कौन भेजता
मौन निमंत्रण,
किसका यह सस्वर संकेत !
चंचल हो मन,
उज्ज्वल हो मन
मन ही तन है,
मन ही जीवन.

( मौलिक एवं अप्रकाशित रचना )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 7, 2013 at 5:32pm

आदरणीया सावित्री जी, आपको मेरी कविता पसंद आयी इससे मुझे अपार प्रसन्नता हुई. हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 7, 2013 at 5:30pm

प्रिय केवल प्रसाद जी, बहुत बहुत धन्यवाद.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 7, 2013 at 5:29pm

आदरणीय विजय जी, आपसे प्राप्त प्रशंसा का एक शब्द भी मेरे लिये बहुत बड़ा पुरस्कार है. मेरा नमस्कार स्वीकार करें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 7, 2013 at 5:27pm

आदरणीय श्री चौधरी जी, आपके विचारों ने मेरी रचना को एक विशिष्टता प्रदान की है. मुझे अप्रत्यक्ष रूप से आपने और लिखने को प्रोत्साहित किया है. हार्दिक आभार.

Comment by Savitri Rathore on April 7, 2013 at 3:29pm

सुन्दर शब्दावली के साथ मन को छूते भाव ......अतिसुन्दर !

Comment by vijay nikore on April 7, 2013 at 2:47pm

आदरणीय शरदिंदु जी:

सुन्दर कविताओं के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 7, 2013 at 10:55am

सुन्दर, मन को झंकृत करती रचनाएं, बहुत सुन्दर। बधाई स्वीकारें।

कृपया ध्यान दे...

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