For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज सवेरे
था मौसम का मिजाज़
भी कुछ खुशनुमा-सा,
थी हल्की सी धूप
और ज़रा सा एहसास भी ठंड का,
थी दफ़्तर की छुट्टी
तो आज मन ने लगाई अपनी अर्ज़ी
इस मौसम का लुत्फ़ उठाएँ
समंदर किनारे सैर कर आएँ I

कंधे पर एक दरी उठाए
हाथ में लिए एक किताब
पहुँचा किनारे पर समंदर के,
तो देखा मैंने,
था आज समंदर
कुछ उदास,
खुद में खोया
चुपचाप
हो जैसे खुद से नाराज़ I

क़तरा क़तरा जुटाकर हिम्मत
थामे लहरों का हाथ
रखा उसके सामने ये सवाल,
कि क्या है तेरी परेशानी ?
क्यूँ हो यूँ बेहाल ?
कहा सागर ने,
यूँ तो मैं हूँ अथाह
अनगिनत लहरें खुद मे समाए
जो है इतनी शक्तिशाली
कर सकती हैं विध्वंस,
किंतु,
ना है मेरे जीवन में इतनी शीतलता
कि भरकर एक गिलास
बुझा सकूँ
दो सूखे होठों की प्यास,
है बना मेरा व्यवहार
इतना कठोर
कि मिटा ना पौउँ
किसी जीवन का एक छोटा सा दाग I

समंदर की बातों में डूबा,
उसकी परेशानियों मे भीगा,
वापस लौट ही रहा था
कि पड़ी मेरी नज़र
एक छोटे से सीप पर,
था वो फुदकता
उछलता कूदता
बड़ा ही खुश,
हो ज़रा चकित
फिर एक बार ये सवाल उठाया
क्या है तेरी खुशी का राज़ ?

सीप मुस्कुराया,
चेहरे पर उसके गर्व नज़र आया
वो बोला,
यूँ तो हूँ मैं बहुत ही छोटा
और ना है मेरा कोई मोल,
किंतु है गुण मुझमें निराला
बना सकता हूँ मोती अनमोल I

इन दोनों की बातों ने
दिया झकझोर,
और सीख ये लेकर बढ़ा घर की ओर,
कि बढ़ना हो तो गुणों में बढ़ो,
आकार से नहीं,
दूसरों को आगे बढ़ाने में भी
है एक अदभुत खुशी I
आगे आओ, हाथ बढाओ I

Views: 362

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Veerendra Jain on November 21, 2010 at 6:31pm
Ganesh ji... Bahut bahut aabhar..aap itni bariki se avlokan kar comments dete hain ki mann prasann ho jata hai...aage bhi aise hi utsahvardhan karte rahiyega..please...

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 21, 2010 at 10:27am
ना है मेरे जीवन में इतनी शीतलता
कि भरकर एक गिलास
बुझा सकूँ
दो सूखे होठों की प्यास,
बेहद सटीक और उम्द्दा, साथ ही समुन्द्र के साथ सीप की भी बात करना ..........
यूँ तो हूँ मैं बहुत ही छोटा
और ना है मेरा कोई मोल,
किंतु है गुण मुझमें निराला
बना सकता हूँ मोती अनमोल,

बहुत ही प्रेरणा दायक लगा, बेहतरीन बिचारों के ताल मेल के साथ सुंदर अभिव्यक्ति |बधाई इस सुंदर काव्य कथा हेतु |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, आपका टिप्पणी व सुझाव के लिए हार्दिक आभार। एक निवेदन है कि — काम की कोई मानता…"
9 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Dayaram Methani जी आदाब  ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है।  ग़ज़ल 2122 1212 22 .. इश्क क्या…"
55 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम चंद गुप्ता जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, सबसे पहले ग़ज़ल पोस्ट करने व सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल 2122 1212 22..इश्क क्या चीज है दुआ क्या हैंहम नहीं जानते अदा क्या है..पूछ मत हाल क्यों छिपाता…"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service