For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये काग़ज़ पे लिखी तरक्कियां, कुछ और कहती हैं
मगर लाखों करोड़ों झुग्गियां, कुछ और कहती हैं !

बड़ा फराख दिल है शहर तेरा शक नहीं मुझ को ,
ये हर-सू बंद पड़ी खिड़कियाँ, कुछ और कहती हैं !

तेरा दा'वा है कि अमन-ओ-सकूं है शहर में सारे,
मगर अख़बार की ये सुर्खियाँ, कुछ और कहती हैं !

मुझे यकीं नहीं आता बहार आ गयी, क्यों कि
उदास चेहरे लिए तितलियाँ, कुछ और कहती हैं !

मुझे गुमान था कि मैं बना हूँ खुद के ही दम से,
मेरे बापू की बूढी हड्डियाँ, कुछ और कहती हैं !

मैं फूलों तितलितों के दरमियाँ बसना तो चाहूं, पर
मेरे कुनबे की जिम्मेवारियां, कुछ और कहती हैं !

हरेक नारी नदी को माँ बुलाना संस्कृति जिनकी
वहां जिस्मों की लाखों मंडिया, कुछ और कहती हैं

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Admin on May 10, 2010 at 1:44pm
तेरा दा'वा है कि अमन-ओ-सकूं है शहर में सारे,
मगर अख़बार की ये सुर्खियाँ, कुछ और कहती हैं !

हरेक नारी नदी को माँ बुलाना संस्कृति जिनकी
वहां जिस्मों की लाखों मंडिया, कुछ और कहती हैं

शब्दों का अकाल पड़ा,
कुछ समझ न आता ,
मै क्या लिखू,
सब कुछ लिख गये आप,
कुछ बात न बचा,
मै क्या लिखू ,
कलम हाथ मे लेकर,
सोच रहा हु,
मै क्या लिखू,
सूरज को दीप दिखाना ,
ठीक नहीं,
मै क्या लिखू,


आदरणीय योगराज साहब , वास्तव मे आप ने इतनी उम्द्दा ग़ज़ल प्रस्तुत किया है की मै कुछ लिखने मे असमर्थ पा रहा हु, बहुत ही शानदार अभिव्यक्ति है, सभी शेयर बहुत ही खुबसूरत और अर्थपूर्णबने है, अन्तिम शेयर तो काफी अच्छा बना है, बहुत बढ़िया, हम सभी को गर्व है की ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार मे आप जैसा हिरा है, धन्यवाद ,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 10, 2010 at 12:49pm
bahut badhiya yograj jee......dil ko chu lene wali rachna hai.
बड़ा फराख दिल है शहर तेरा शक नहीं मुझ को ,
ये हर-सू बंद पड़ी खिड़कियाँ, कुछ और कहती हैं !\
bahut badhiya hai...aisehi likhte rahe.....keep it up....
Comment by Biresh kumar on May 10, 2010 at 12:26pm
sidha dil ko cheer gayi prabhakar saab!!

kya baat

kya baat


or

kya baat!!!!!!!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service