मेरा राम आयेगा
नित्य मुँह अंधेरे फूल चुन चुन
गली आंगन थी रही सजा,
एक आस एक चाह लिये
कही शबरी - '' मेरा राम आएगा ''.
शाम ढल जाती सूरज थकता
देकर अंतिम किरण जाता,
एक अटूट विश्वास बढ़ाता,
कहती शबरी - '' मेरा राम आएगा ''.
बचपन गया , जवानी बीती
पलक बिछाए राह निहारती,
प्रौढ़ा दिनभर मगन रहती
कहती शबरी - '' मेरा राम आएगा ''.
वन उपवन भी थक चले
बोले ' तू बूढ़ी हो गयी , जा
कहीं विश्राम कर , छोड़ ये जिद्द '
शबरी बोली - '' मेरा राम आएगा ''.
यमराज भी कहने लगा
' उठ गया अब तेरा दाना '
' ठहर ! एक पल और ठहर !! '
शबरी ने कहा - '' मेरा राम आएगा ''.
शबरी -
आज मेरा मन क्यों है बेचैन
'' गेंदा चमेली और महक -
सुन रही मैं प्रभु की पगध्वनि,
रजनीगंधा तू खूब गमक ''.
राम –
इस बीहड़ को किसने सजाया ?
रंग बिरंगे फूलों से पथ ऐसा !
'' लक्ष्मण ! है कौन मायावी ?
देख भाई बढ़के तो ज़रा ! ''
लक्ष्मण धनुष – बाण लिये
आश्चर्य से था देख रहा,
कोई मंत्र जाप कर रही थी
अविराम '' मेरा राम आएगा ''.
राम भी आ गया खिंचा
अभिभूत हुआ भक्ति देख -
धरती आकाश पल में स्तब्ध
सुवासित राममय कुटिया निरेख,
शबरी की तपस्या हुई सफल
यह विश्वास था या सबर,
एक दर्शन मात्र के लिये
पूरा जीवन था न्यौछावर .
( राम – शबरी )
कुछ पकी कुछ अधपकी
शबरी थी बेर खिला रही
‘यह लो प्रभु ! नहीं ! ये तो हैं खट्टे’
हाथ बढ़ाकर पल में थी खींच रही -
राम मुस्कुराते रहे मंद मंद,
शबरी दुविधा में थी कैसे दूँ
कहीं बेर खट्टे निकले तो...''
समझ गये राम शबरी की मनसा
'' तुम पहले चखकर बेर मुझे दो ''
सुनकर राम की बात चौंका लखन
'' शबरी रूको ! अनर्थ मत करो ''
तब तक राम जूठे बेर थे खा रहे,
शबरी चख चख के थी खिला रही,
हो रहे थे राम शबरीमय – और
शबरी राममय थी हो रही.
( मौलिक एवं अप्रकाशित रचना )
--- कुंती
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