मैं इतनी धार्मिक प्रवृत्ति की नहीं हूँ लेकिन नास्तिक भी नहीं हूँ . सारे धार्मिक त्योहार पूरी निष्ठा के साथ मनाती हूँ . मुझे भगवान की आरती सुनना बेहद अच्छा लगता है .
पिछ्ले साल की बात है . दिल्ली से हम लखनऊ रहने आ गये . शारदीय नवरात्र चल रहा था . हम पास के एक मंदिर में माँ दुर्गा की पूजा करने गये . आरती जब शुरू हुई तो आँखें बंद कर मैं पूरी तन्मयता से उसमें लीन हो गयी . आरती समाप्त हो गयी लेकिन मैं आँखें मूँदे ध्यानमग्न रही , तभी पण्डाल में हड़कम्प मच गया . मैं कुछ समझ पाती इससे पहले मेरी कुर्सी पर ज़ोर का धक्का लगा .मैं बुरी तरह डर गयी कि हो न हो भूकम्प आ रहा है . मैंने डरते डरते जब अपनी आँखें खोलीं तो क्या देखती हूँ कि लोग एक दूसरे को धक्का दे कर पंडित जी की ओर तीव्र गति से बढ़ रहे हैं . पंडित जी आरती की थाली लिये भक्तों के बीच घुमाने निकले थे लेकिन लोगों में इतना सब्र कहाँ कि अपनी बारी का इंतज़ार करते . हाथ बढ़ा बढ़ाकर हर कोई थाली को अपनी ओर खींचने की कोशिश करने लगा . एक भक्त ने कुछ ज्यादा ही जोश दिखलाया और उसने ऐसा चील झपट्टा मारा कि आरती की थाली ही गिर गयी .
ऐसी क्रिया मैंने हर जगह देखी है . आज तक मेरी समझ में यह बात नहीं आयी है कि लोग ऐसा क्यों करते हैं ? यह भगवान के प्रति अपनी निष्ठा दिखलाना है या आरती पाकर कोई सिद्धी मिल जाने की ललक है .....? ? ? . क्या इस तरह पूजा और भक्ति की गरिमा को आघात करना नहीं होता है...?
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
----- कुंती
Comment
आदरणीया आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ यह दृश्य सभी हिन्दू सार्वजनिक धार्मिक आयोजनों में आम है.इसके प्रमुख कारणों में समाज में व्याप्त धर्म भीरुता है. जैसे आरती शुरू हुई है तो आप आरती समाप्त होने तक रुको वर्ना भगवान् नाराज होंगे आरती प्रसाद लेकर जाने का जिक्र हमारे यहाँ के पूजन कथाओं में मिलता भी है. इसके अतिरिक्त एक कारण ये होता है की पुजारी जी अपनी धाक जमाने के लिए आरती को इतना लंबा खींचते हैं की कई कई बार यह समय एक घंटे तक का भी हो जाता है तब भक्तों में बैचेनी होना स्वाभाविक है. और सब जानते हैं ऐसे स्थलों पर भक्तों के साथ भीड़ भी होती है, भीड़ जिसका काम ही होता है अशिष्टता प्रदर्शित करना.
जी, बिलकुल सही लिखा आपने. अगर आरती की थाली पकड़ने से इश्वर मिल जाता तो सबसे पहले पुजारी को मिलता.
बढ़िया वर्णन.
सादर
उषा
आदरणिय केवल जी , संदीपजी, विजय जी ,एवं भाई राम जी ,हमारे जीवन में कुछ छोटी छोटी घटनाएँ घटती रहती है यों तो हम नज़र
अंदाज़ कर देते हैं मगर गौर से देखा जाए तो यह इंसान की आदिम प्रवृति की ओर संकेत करता है. आप लोगों को बहुत 2 धन्यवाद.
आदरणीया कुन्ती मुखर्जी जी,
’ या आरती पाकर कोई सिद्धी मिल जाने की ललक है ............???।’ ऐसे लोग केवल घर जाने की जल्दी और अपनी भक्ति प्रदर्शन मात्र करने के कारण ही उत्सुकता दिखाते हैं...और असफल हो जाते हैं। अतिसुन्दर कथा। बधाई स्वीकारें। सादर,
आदरणीया कुंती जी:
आपने पूछा ....// लोग ऐसा क्यों करते हैं ? //
वे ऐसा इसीलिए करते हैं क्यूँकि उनमें विवेक की कमी है,
और यह कमी कम नहीं हो रही, आबादी के साथ यह कमी
भी बढ़ती जा रही है।
सादर,
विजय निकोर
सुन्दर कथ्य, सटीक व्यंग है ///मै तो इसे अंध विश्वास ही मानूंगा ///
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